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ओपपातिकमरे जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवदृवेहि, उवदृवित्ता एयर्मणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ४३॥
मूलम्-तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमई सालाए' वाणायामुपस्थानगालायाम् , 'पाडियवपाडियकाई' प्रयेक प्रयेकम्-प्रत्येकाऽर्थम् , 'जत्ताभिमुहाइ' यागभिमुसानि भगवदर्शनार्थगमनानुफूलानि 'जुत्ताई' युक्तानि 'जाणाड' यानानि 'उपद्ववेहि उपस्थापय-सनीक य समानय, 'उबढविता' उपस्थाप्य 'एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणाहि' एतामाजमिका प्रयर्पय-मटीयामाजा पश्चात् समर्पय-सर्वे सम्पादितम् इति नूहि ॥ सू० ४३ ॥
टीका-'तो ण से' इत्यादि।
तत सलु स 'जाणसालिए चलाउयस्स एयमह' यानगालिको बलव्यामृतस्यैतमर्थम् यानसजीकरणाऽऽनयनरूप निदेश श्रुवा, आजाया विनयेन वचन 'पडिसुणेइ'' के बैठने योग्य अलग २ रूप में (जत्ताभिमुहाइ) याना के लायक-भगवान के दर्शन करने के लिये जिसमे बैठकर जाया जाता है ऐसे (जुत्ताइ) एव अच्छे २ बेलों से युक्त (जागाइ) रथादिक वाहनों को (उपद्रवेहि) उपस्थित करो, (उपद्रवित्ता) उपस्थित करके (एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणेहि) इस मेरी आज्ञा को यथावत् पालन करने की खबर पीछे मुझे बहुत जल्दी भेजो ॥ सू० ४३ ॥
'तए ण से जाणसालिए' इत्यादि ।
(तए ण) सेनापति के आदेश देने के बाद (से जाणसालिए) उस यानशाला के अधिकारी ने (वलवाउयस्म) सेनापति के (एयम) यान को सजित करके लानेको पाडियस्काइ) मे ४ राणीने या योज्य ससा मसग ३५भा (जत्ता भिमुहाइ) यात्राने साय नगवानना हैशन ४२वा माटे सभा मेसीन वाय सेवा, (जुत्ताइ ) मा सारा मा२६ महथी युक्त (जाणाइ) २थ २ES पाडनाने (उचट्टवेहि) ७.१२ २। (उपद्वपित्ता) डा०२ उशन (एयमाणत्तिय पन्चप्पिणेहि) मा भारी माज्ञानु पालन ४२वानी मस२ ५छी भने मई arch wal (सू० ४३)
" त ण से जाणसालिए" त्यादि
तए गो मेनापतिना माशीचा पछी (से जाणसालिए) ते यानशालाना शधिकारी (पलपाउयास) सेनापतिनी (एयमट्ट) यानने तयार भने साव