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औपपातिकसने
अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, [अप्पेगइया] पंचाणुव्वडयं सत्तसिम्खावडयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कटु पहाया कयवलिकम्मा कय-कोउय-मंगलपिरतिपूर्वक मुण्टिता --पृतकालमना सम्पद्य 'जगारामी अणगारिय पच्चइम्सामो' अगा राद्-गृहाद् अनगारिकता साधुव प्राजिप्याम प्राभ्याम --अनगारा भविष्याम , अप्पेगडया' अप्येकके 'पचाणुव्बइय सत्तसिक्सापटय वासविह गिहिधम्म पडिवनिस्सामा' पञ्चानुवतिक मतशिक्षावतिक द्वादयविध गृहिधर्म प्रजिष्याम , 'अप्पेगडया' अप्येक:'जिण-भत्ति-रागेण ' जिनभक्तिरागेग, 'अप्पेगटया' अभ्येकके, 'जीयमेयति कट्ट' जातमेतदिति कृवा-कुलाचारोऽयमिति मना, 'हाया' स्नाता-'कयालिसम्मा' कृतबलिरमाग , 'कय-कोउय-मगल-पायच्छित्ता' रत-कौतुक-मगल-प्रायश्चित्ताइस्सामो) सावध व्यापारा से सर्वथा विरत होकर, कालुचनपूर्वक गार्हस्थिक अवस्था का परित्याग कर अनगार बनेगे-दस प्रकार की भावना से, तथा कितनक-(पचाणुव्वक्ष्य सितसिवावदय दुवालसविह गिहिधम्म पडियजिस्सामा) पाच अणुव्रत एव सात शिक्षाव्रत के भेद से १२ भेटरूप गृहस्थ के धर्म को स्वीकार करेग-इस भावना से, (अप्पेगइया) कितनेफ (जिगभत्तिरागेण) जिनन्द्र की भक्ति करेंगे इस प्रकार भक्ति के अनुराग से, (अप्पेगडया,) कितनेक (जीयमेयत्ति कट्ट) यह हम लोगों का कुलाचार है-इस प्रकार मान कर, (हाया) स्नान किये, (कयालिफम्मा) काक आदि को अन्नादि दान रूप बलि कर्म किये, (फय-कोउय-मगल-पायच्छित्ता) दुम्वमादि निवारण के यि रिय पव्वइस्सामो) सावध व्यापाशथी भर्वथा विरत यन शयन ગાઈશ્વક અવસ્થાને પરિત્યાગ કરીને અનગાર બનશે–એ પ્રકાગ્ની ભાવ नाथी, तथा 325 (पचाणुवइय सत्तसिरसावइय दुवालसहि गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो) पाय मानत तेभर मात शिक्षायतन लेयी १० ले ३५
डायना भनी स्वी२ ४२शु मेवी भावनायी, (अप्पेगइया) उमा (जिगभत्तिरागेण) जिनेन्द्रनी मति २शु से डरनी मतिना मनुगमथी, •(अप्पेगइया ) 32613 ( जीयमेयति कट्ट) PAN सभा। साया - प्रा
की मान्यताथी, (व्हाया) स्नान ४री (कय-नलि-कम्मा) 31 माहिने मत माहवान३५ पलिम ४३, (कय-कोउय-मगल-पायच्छित्ता) दुवनाहि निवा२९ भाटे मसी ति: ४ी थापा माघार ४री, (सिरसा कठे