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पोयपषिणो-टोका र ३८ भगवदर्शनार्थ जनोत्सुक्यम्
३९७ मूलम्-तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग-चउक-चच्चरचउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे ड वा
टीका-तए ण' इत्यादि । तत =नदनन्तर-चतुनिकायदेवानामागमनाऽनन्तर, सलु 'चपाए णयरीए' चम्पाया नगर्याम् 'सिंघाडग-तिग-चउक्क-चचरचउम्मुह-महापह-पहेसु' शृङ्गाटक-कि-चतुष्क-च वर-चतुर्मुग्व-महापय-पयेपु-तत्रशृङ्गारक-'सिंघाडा' इति भाषाप्रमिद्ध जलज फल, तदाकार स्थान, त्रिकोणमियर्थ , निक-मिलितत्रिमार्गस्थानम्, चतुफयत्र च वारो मागा मिलिता सन्ति तत्-'चोराहा' इति भाषाप्रसिद्ध स्थानम्, च वर=बहुमार्गसमेलनस्थानम् , चतुर्मुख-चतुद्वार स्थानम्-आगन्तुकाटीना विश्रामस्थानम् , महापथ -राजमार्ग , पन्था -रथ्यामात्रम्, तेषु सर्वेषु स्थानेषु यत्र 'महया जणसद्दे इ वा' महान् जनगड -परस्पराऽऽलापादिरूपो भवति 'डकारो' वाक्याल्दागर्थ , 'वा'-प्रझारार्थ , तथा 'जणवृहे इ वा जनन्यूह -लोकसमूह , 'जण
'तए ण चपाए णयरीए' दयादि।
(तए ण) चतुर्निकाय के देवों के आगमन के अनन्तर (चपाए णयरीए) चपा नगरी मे (सिंघाडग-तिय-चउक-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु) शृगाटकतीनकोनवाले स्थान पर, निक-जहा पर तीन रास्ते आफर मिलते है ऐसे स्थान पर, चतुष्क-जहा पर चार मार्ग आकर मिले रहते है ऐसे चौराहे पर, चत्वर-अनेकमार्गीका समेलन जहाँ होता है ऐसे स्थान पर, चतुर्मुस-आगन्तुक जनों के विश्रामार्थ निर्मापित स्थान पर, महापथ-राजमार्ग पर, एव पथ अर्थात जहाँ से गली निकलती हो ऐसे स्थान पर, (महया जणसद्दे इ वा) महान् जन शब्द होने लगा-परस्पर मिलजुल कर लोग बातचीत करने लगे। (जगवृहे इ वा) एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से पूछने लगा, अथवाપૂર્વે કહેલા અસુરકુમારની પેઠે ત્રણવાર આ જતિપૂર્વ સવિધિ વેદના કરીને પ્રભુની સેવા કરવા લાગ્યા (સૂ ૩૭)
'तए ण चपाए णयरीए' ऽत्यादि
(ताए ण) यतुनि डायना हेवोना मागभन पछी (चपाए णयरीए) या नगरीसा (सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर-चउम्मुह महापह पहेसु) सृगाटक-त्रण आवास स्थान ५२, त्रिक-यात्रा २२ता मापाने भो छ सेवा स्थान ५२, चतुष्क-या या२ भाग मावीने भणे सेवा यौटा ५२, चत्वर-मने भागानु सभेसन न्या थाय छ वा स्थान ५२, चतुर्मुख-मापना२ भा - मोना विश्राम भाट भु४२२ ४रेसा स्थान ५२, महापथ-२४मा ५२, मेष पथ-अर्थात् न्याथी सी नीजी डाय तेका स्थान। ५२, (महया जणसद्दे इ वा) મહાન જન-શબ્દ થવા લાગ્યા-પરસ્પર મેલામલાપ કરી લે વાતચીત