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বিধানি
मूलम्-संसारभउधिग्गा भीया जम्मण-जर-मरणगंभीर-दुक्ख-पखुभिय-पउर-सलिलं संजोग-विओग-बीड
टीका-भगवत श्रीमहावीरस्वामिनोऽनगारा पुन कौटया र दयाह- ससारभउम्बिग्गा' इयादि । ससारभयोद्विग्ना -चतुर्गनिभमणलभगसमाग्भयादुद्विग्ना = याउला, 'केनोपायेन समारसागरात् तरिष्याम ' इतिचिन्ताजाल-कुला इत्यर्थ । अत एव भीया'-मीता = भययुक्ता , अस्य तरन्ती यत्रान्चय । मूत्रकार ससारमागर वर्णयति-'जम्मण-जर-मरणकरण-गभीर-दुक्ख परखुभिय-पउर सलिल' जन्म-जरा-मरण करण-गम्भीर दुस-प्रभुमितप्रचुर-सलिलम्-जन्मजरामग्णान्येव करणानि सायनानि यस्य तत् तथा, तदेव गम्भीरदुख-अगाढदु स, तदेव प्रक्षुभित-प्रचलितम् , प्रचुर-विपुल सलिल-जल यम्मिन् स जन्मजरा-मरण-करण-गम्भीर-दुख-प्रक्षुभित-प्रचुरसलिलस्त, पुन कीदृश ससारसागरम् । इत्या
'ससारभउन्धिग्गा' इत्यादि।
भगवान महावीर के अनगार और भी कैसे थे । इस बातको प्रकट करने के लिये सूरकार इस सूनकी प्ररूपणा करते हुए कहते है कि भगवान् महावीर स्वामी के ये अनगार (ससारभउबिग्गा) चतुर्गति में भ्रमण करने रूप ससार के भय से उद्विग्न थे, 'किस उपाय से हम लोग इस अथाह ससारसागर से पार होंगे। इस प्रकार का चिन्तयन सर्वदा करते रहते थे। (भीया) इसलिये ये स्सारभीर थे । अब यहा से यह मसारसागर कैसा है। इस बात को नाचे लिखित विशेषणों द्वारा सूत्रकार स्पष्ट करते है-(जम्मण-जर-मरण करण-गभीर-दुक्ख-पक्लुभिय-पउरसलिल) जन्म, जरा और मरण, ये ही जिसके साधन है ऐसा प्रगाढ दुख ही जिसमे उछलता हुआ अगाध जल भरा हुआ है, तथा
'ससारभउबिगा' या
ભગવાન મહાવીરના અનાર પરપણ કેવા હતા? તે વાતને પ્રકટ કરવા સૂત્રકાર આ સૂત્રની પ્રરૂપણ કરતા કહે છે કે ભગવાન્ મહાવીર સ્વામીના ते मना (ससारभविग्गा) यतु तिभा प्रभार स११३५ ससाना ભયથી ઉદ્વિગ્ન હતા, “કયા ઉપાયથી અમે આ અગાધ સ સાસાગરથી પાર य' मे तु कितपन सर्प। यर्या ४२ता तो (भीया) मेथी तमा સ સારભીરૂ હતા હવે અહંથી આ સ સારસાગર કે છે? તે વાત નીચે समेसा विशेष द्वारा सूत्रा२ •पाट १२ छ-(जम्मण-जर-मरण करण गभीरदक्ख पक्खुम्भिय-पउरसलिल) •म, १२गने भरधु, से रेना साधन એવા પ્રગાઢ દુ ખ જ જેમાં વિસ્તારથી ઉછળતા પાણીના જેમ ભરેલા છે તથા