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औषणातिर तं लोगोवयारविणए ? लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णते; तं जहा-अब्भासवत्तियं १, परच्छंदाणुवत्तिय २, काहेओ ३, कयपडिकिरिया १, अत्तगवेसणया ५, देसकालण्णुया ६, सबसु अप्पडिलोमया ७, से तं लोगोवयारविणए। से तं विणए ॥ सू० ३०॥ युक्तमुक्तम्, अत्र सोपयोग गमनादिक वाच्यमित्रर्थ । 'से तं पसत्यकायविणए ' म एप प्रशस्तकायग्निय { ' से त कायविणए ' स एष कायविनय ।' से कि त लोगोश्यार विणए । अथ कोऽमो लोकोपचारविनय । लोकानामुपचरण लोकोपचार , तसम्बधी दिनयो, लोकोपचारविनय , लोकव्यवहारसाधको विनय इत्यर्थ , 'लोगोश्यारविगए सत्तविहे पण्णत्ते' लोकोपचारविनय समविध प्रजप,-'त जहा' तद्यथा-'अभासवत्तिय' अभ्यासवृत्तिता कलाचादिममीपस्थितिशीलना ११'परच्छेदाणुरत्तिय' परन्छन्दानुवर्तिताः पराभिप्रायानुवर्तनम ।। 'फजओ' कार्यहतो विद्यादिप्रामिनिमित्त-'श्रुत जाती है और इस प्रशस्तकायविनय में ये सब ही कायमस्वी क्रियाएँ उपयुक्त होकर की जाती है। प्रश्न-(से कि त लोगोषयारविणए ) लोकोपचार विनय क्या-कितने प्रकार का है। उत्तर-(लोगोश्यारविणए सत्तविहे पण्णत्ते) लोकव्यवहारसाधक यह लोकोपचारविनय सात प्रकार का कहा गया है, (त जहा) वे सात सात प्रकार ये हैं-(अभासवत्तिय) अभ्यासपर्तिता-कलाचार्य आदि के समीप मे स्थितिशीलता, अर्थात्-गुरु आदि के निकट रहने का स्वभाव होना, (परच्छदाणुवनिया) परच्छन्दानुवर्तिता-गुरु आदि की आज्ञा के अनुकूल अपनी प्रवृत्ति रसना, (कज्जहेओ) रिया आदि की प्राप्ति के निमित्त भक्तपान
સ્થાથી થવાવાળી ગમનઆદિક ક્રિયાઓને રેકાય છે અને આ પ્રશસ્તાવિનયમાં
सधी ४१यस ॥धी मियामी जपयोगी समस्याथी राय छे प्रश्न-(से कित लोगोपचारविणए) पयार विनय शुछ-सा प्रश्नाले त्तर-(लोगोरयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते) साप्यवहारसा मानाच्या२विनय यात मारना
याछ, (त जहा) भात -(अध्भासवत्तिय ) अभ्यासपतिताયાચાઆદિના સમીપમાં સ્થિતિશીલતા, અર્થાત્ ગુરુ આદિની પાસે રહેવાને anार, (परच्छदाणुयत्तिया) ५२२७ नुवनिता-Y3 माहिनी भाशाने
पानी प्रवृत्ति समी, (कजहेओ) वि माहिनी प्रासिने निमित्त