________________
पीयूषषिणो-टीका स ३० गन्तरतपोभदवर्णनम
૨૩૭ मूलम्-से किं तं अभितरए तवे ?, अभितरए तवे छविहे पण्णते, तं जहा-१ पायच्छिते, रविणए,३ वेयावच्चं ४ सज्झाओ, ५ झाणं. ६ विउसग्गो। णाय=निरवद्यम पीठफलकम यासस्तारकम उपमम्पय विहरति । ' से त विवित्त-सयणासण-सेवणया' सैया निरिक्त-डायना-सन-सेवनता। ‘मे त पढिसलीणया' सैया प्रतिसलीनता, 'सेत बाहिरए तवे' तदिद वाद्य तप ॥ म० ३० ॥
टीका-अथाभ्यन्तर तप प्रोच्यते-'मे कि त अभितरए तवे?' अथ किं तद् आभ्यन्तर तप ।, उत्तरमाह-'अभितरए तो बिहे पण्णत्ते' आभ्यतर तप पड्डिय प्रजमम् , 'त जहा' तद्यथा-१ 'पायच्छित्त' प्रायश्चित्तम्, २-'विणए' विनय , ३ 'वेयावच्च' वैयावृत्यम्, ४-'सज्झाओ' स्वाध्याय , ५-'प्राण' व्यानम्, ६'विउसग्गो' व्युसर्ग इति । तर प्रायश्चित्तमाह-से कि त पायच्छित्ते' अथ किं गया एव मस्तारक अगीकार कर विचरता है, (से त विवित्त-सयणा-सण-सेवणया) यह निरिक्तगयनासनसेवनता है। (से त पडिसलीणया) इस प्रकार यह प्रतिमलीनता है । (से त वाहिरए तवे) इस प्रकार यह म्ह प्रकार के बाह्य तप के भेद-प्रभेद कहे गये हैं ।। सू० ३०॥
अव आभ्यन्तर तप का सूत्रकार वर्णन करते हैं-' से कितअभितरए तवे?" इत्यादि।
(से कि त अम्भितरए तवे) आभ्यन्तर तप क्या है-कितने प्रकार का है ? (अभितरए तवे छबिहे पण्णत्ते) आभ्यन्तर तप रह प्रकार का हैं, (त जहा) वह इस प्रकार से है, (पायच्छित्त, विणए, वेयावच्च, सज्झाओ, झाण, विउसग्गो) १ प्रायश्चित्त, २ विनय, ३ वैयाऋत्य, ४ स्वा याय, ५ ध्यान और ६ पी3, ५१४, शय्या तेभर सन्ता२४ २५ २४२ रीन पियरे छ (से तं विवित्त सयणा-सण-सेवणया) लिवित शयनासनवनता (से त पडिसलीणया) मा प्रा२ मा प्रतिम सीनता छ (से त वाहिरा तये) मा प्रडारे ते ७ ४ारना माहतपना असे ४सा छ (सू ३०)
वे साक्ष्य तर तपनु सूत्रान४२छ-से कितअभितरए तवे "त्यादि
(से कि त अभितरए तये १) प्रश्न-मास्यन्त२ त५ शुछ १ 3टा प्रारना छ १ (अभितरए तवे छविहे पण्णत्ते) उत्तर-मास्यन्त२ त५ ७ प्रश्न छे (त जहा) मा ४२ छ-(पायच्छित्त विणए वेयावच्च, सझाओ झाण विउसम्गो) १ प्रायश्चित्त, २- विनय, 3 यावृत्त्य, ४ २वाध्याय, ५ ध्यान में