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२१६ अप्पलोहे ४, अप्पसद्दे ५, अप्पकलहे ६, अप्पझंझे ७से तं भावोमोयरिया । से तं ओमोयरिया। से किं तं भिक्खायरिया ? भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता; तं जहा-दव्याभिग्गहचरए १,, अपमान -जात्यादगिमानराहित्यम् । 'अप्पमाए' अन्यमाया, 'अप्पलोहे' अपलोम,'अप्पसद्दे' अल्पशब्द ,-'अप्पकलहे' अन्धकलह कलहाभान , 'अप्पझझे अपझञ्झ = परस्परभेदोत्पादकवचन-यापारो झञ्झ, तस्याभार । ' से त भावोमोयरिया' सैपा भावाऽवमोदरिका । ‘से त ओमोयरिया' सैपाऽवमोदरिका ।
से किं तं भिक्खायरिया' अथ का सा भिक्षाचा, 'भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता' भिक्षाचर्या अनेकविधा प्रज्ञता, 'त जहा' तद्यथा-दन्वाभिगहचरए' द्रव्याभिग्रहचरक -द्रव्याऽऽश्रिताभिग्रहेण 'अमुकवस्तु ग्रहोप्यामि' इति रूपेण माणे अप्पमाए अपलोहे अप्पसदे अप्पकलहे अप्पझंझे) मान को अन्य करना, माया को अन्य करना, लोभ को अन्य करना, शब्द को अप करना अर्थात् कम बोलना, कलह को अल्प करना-अभाव करना, झझा को अर्थात्--गण में जिस वचन से छेद-भेद उत्पन्न होता है उस वचनका अल्प करना--अभाव करना, यहाँ पर 'अन्य' शन्द अभावार्थक है । (से तं भावोमोयरिया) ये सभी भावावमोदरिका है । (से तं ओमोयरिया) यह अवमोदरिका तपमा वर्णन मपूर्ण हुआ।
(से कि त भिक्खायरिया ?) भिक्षाचर्या क्या है--कितने तरह की है ?
उत्तर--(भिरखायरिया अणेगविहा षण्णता) भिक्षाचर्या अनेक तरह की कही गई है। (त जहा) जैसे (दवाभिग्गहचरए, खेताभिग्गचरए, कालाभिग्गहचरए भावाभिमाहचरए) १ द्रव्यामिगहचरक-मुनि अभिग्रह लेता है कि मुझे जो अमुक वस्तु भिक्षा में
अपलोहे अप्पस अप्पकलहे अप्पझझे) भान १८५(माछु)४२७, माया १८५ ४२वी, લોભ અલ્પ કર, શાદ અલ્પ કરવા અર્થાત્ ઓછુ બેલવું, કલહ (કકાસ) ઓછા કરવા, ઝઝા અથાત્ તેઓના સમૂહમા જે વચનેવી છેદ-ભેદ ઉત્પન્ન याय सेवा वयन नही माता, (से त भायोमोयरिया) २ पा मापापमहरित कसे त ओमोयरिया) 21 अपरिक्षा त५नु न स पूषु च्यु
सति भिसायरिया) लिया २-३८३ तनी छ ? उत्तर (भिस्सा रिया अणेगविहा पण्णता) मिक्षायर्या भने उजतनी ४ाय छ (त जहाभ (दव्याभिगहचरए, खेत्ताभिग्गहचरए, कालाभिग्गहचरए, भाषाभिग्गहचरए) १ द्रव्या
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