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पीयूषयपिणी टीका सृ १९ भगवदन्तेवासिवर्णनम
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मृलम् — तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमा
इ यर्थ । ' इहलोग-परलोग - अप्पनिद्वा' इहलोक परलोकाऽप्रतिनद्रा - लोकद्वयसुखासक्तिरहिता, 'ससार - पार - गामी' ससार-पार - गामिन-भवसमुद्रत स्वपरा मतारका, 'कम्मणिरायणट्टाए अन्भुट्टिया विहरति ' कर्मनिघातनार्थमभ्युथिता –सकलकर्मनिर्जरणार्थं कृतोद्यमा विहरन्ति ॥ सू० २९ ॥
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टीका- 'तेसि ण' या । तेपा श्रीमहावीरस्वामिशिष्याणा' 'भगवताण ' भगवता-तप - यमशोभाशादिनाम, 'एएण विहारेण विहरमागाण' एतेन विहारेण विहरताम् उत्र विहार विचरण – मुनिचर्या, यद्वा निविधैरनेकप्रकारैरुपधिभारवहन - पाउचलनपरोषहसनादिरूपै कायक्लेगै कर्माणि ह्रियन्तेऽनेनेति निहार, एतेन निहारेण - ग्रामनगरा
दुक्खा) सुख एव दुसमे समान परिणाम वाले थे । सुखमें हर्ष एव दु सम विपाद इस प्रकार निपमता लिये इनके परिणाम नहीं थे | ( इहलोग परलोग - अप्पडिवद्धा) इस लोक-पनी एव परलोक सनधी सुसाकी आसक्ति इनके हृदयमें नहीं थी । (संसारपारगामी ) ये भवरूपी समुद्रको तिरनेवाले थे । ( कम्मणिग्धायणट्ठाए अन्भुट्टिया विहरति ) समस्त कर्मोकी निर्जरा करनेके लिये ही सयमाराधनमे तत्पर होकर विचरते धे ॥ सू० २९ ॥
' तेसि ण भगवताण' इत्यादि,
( तेसि ण भगवताण) महावीर स्वामाके इन स्थविर भगवन्तोंका जो (एएण विहारेण विरमाणा ) इस प्रकार के विहार करते थे । विहार शब्दका अर्थ मुनिचर्या
दुक्खा ) सुण तेभन हु अभा समान परियाभवाजा हता सुभाभा दुष तेभन हु अभा विषाद (शोङ ) शेवी विषमता तेभनाभा नहोती ( इहलोगपरलोग - अप्पडिश्रद्धा ) था बाउ-समधी तेभर परसोड - समधी सुयोनी यासहित तेभना हृध्यभा नहोती ( ससारपारगामी ) तेथे लवड्या समुद्रने તરવાવાળા હતા ( कम्मणिग्घायणट्ठाए अब्भुट्टिया विहरति ) सभस्त ડૉની નિર્જરા કરવા માટે જ સ યમ–આરાધનમા તત્પર થઈને વિચરતા હતા ( सू २७ )
' तेसि ण भगवताण ,
धत्याहि,
( तेसि ण भगवताण ) मे महावीर स्वामीना ते स्थविर ભગવ તા ( पण विहारेण निरमाणाण ) मा प्रहारे विहार ४२ता उता, विहार शण्डने!