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पीयूपषिणी-टोका स २८ भगवदन्तेय मिथर्णनम
मूलम्न त्थि णं तेसि णं भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे भवइ । से य पडिबंधे चउबिहे पण्णते, तंजहा-दव्वओ खेतओ कालओ भावओ। दव्वओणं-सचित्ताचित्तमीसिएसु
टीका' नत्यि' इत्यादि । नास्ति अय पल , यत् खलु तेसि ण भगताणं । तेषा सल भगवताम्-श्रीमहावीरस्वामिन शिष्याणाम् कत्थइ । मापि-कस्मिन्नपि विपये 'पडियो भाइ' प्रतिन-1 -आसक्ति भवतीति, श्री महावीरस्वामिनोऽन्तेगासिना सयमप्रतिवन्धीभूत कोऽपि हेतु कुनाऽपि न भवतीति भाव । " से य पडियो चउवि पण्णत्ते स च प्रतिनधशतर्विध प्रजम त जहा' तयथा-भेदप्रकारचे यम्-यत क्षेत्रत कालतो भावतश्च । तेषु 'दयो ण द्रव्यत खलु सचित्ताचित्त-मीसिएर दव्येमु' सचित्ताऽचित्त-मिश्रितेपु प्रयेपु । तन-सचित्त-शिष्यादिकम् , अचित्त वाटिकम्, मिश्रितम्-शिष्यसहितवत्रादिकम्, एतेषु द्रव्येषु, 'खेत्तओ क्षेत्रत --
'नथि णं' इत्यादि।
(तेसि णं भगरताणं) भगवान महावीर के समीप मे रहनेवाले उन स्थविर भगन्ता का (कथा) किसी भी विषय मे (पडियधे) प्रतिबंध (नत्थि) नहीं था। अर्थात् भगवान् वीर प्रभु के ये सगस्त मुनिजन सयम के विघातक किसी भी पिय + आसक्ति नहीं रसते थे। (से य पडिरये चउबिहे पण्णत्ते ) यह प्रतिवध चार प्रकार का कहा गया है, (तजहा) वह इस प्रकार है-(दपओ खेत्तओ कालो भारओ) है य से, क्षेत्र से, काल से एय भार से । (दओ सचित्ता-चिन-मीसिएसु दवसु) द्रव्य से पतिबंध ३ प्रकार का है-(१) सचित्त (२) अचित्त (३) सचित्ताचित्त।
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नत्यि ण' त्याह
(तेसि ण भगवंताण) सापान महावीरना सभीया सपापा ते स्थावर सताने (कत्थइ) आप विषय (पडियधे ) प्रति (नत्थि ) ન હોત, અર્થાત–ભગવાન વીરપ્રભુના તે સમસ્ત મુનિજને સ યમના વિઘાતક खाय वा पशु विषयमा मासहित मत नहाता (से य पडियधे पच्चिहे पण्णत्ते) प्रतियार प्रहार खेसा छ (तजहा) मा ४२
७ (दवओ सेत्तओ कालओ भावओ) द्रव्यथी, क्षेत्री, ४थी तभ० माथी । (दव सचित्ता-चित्त-मीसिएस दव्येसु) द्रव्यथी प्रति प्रारना
(૨) અચિત્ત, (૩) સચિરાચિત, શિષ્ય આદિક સચિત છે