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________________ - - । 'मोयगाण, सत्ताण , मुक्त और व्यावृत्तठमपाले पीयूपगपिणी टीका सु २० फूणिककृता मिद्वाना मदायीरम्य च स्तुति १३१ च्छउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं युद्धाणं वोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिव-मयलतछमानस्तेभ्य । 'जिणाण' जिनभ्य -स्थय रागद्वेपशत्रुनेतृभ्य , 'जायपाण' जापकेभ्य -जापयन्ति कर्मगनून् जयन्त भव्यजीनगण धर्मदेशनादिना प्रेरयन्तीति जापका, जिधातोणी 'कीड़जीना णो' दतिसूत्रेण आने पुकि जापि इति ण्यन्ताद्धातोवुलि जापकपदसिद्धि , तेभ्यो जापकेभ्य । 'तिन्नाण' तर्णेभ्य - स्वय ससारौघससारार्णव तीर्गा -उत्तीणास्तेभ्य । 'तारयाण' तारकेभ्य -तारयन्त्यन्यान् इति तारकान्तेभ्य । 'बुद्धाण' बुद्धेभ्य --स्थय चोर प्राप्तेभ्य । 'बोहयाण' बोधकेभ्य -योधयन्यन्यान् इति चोधकास्तेभ्य । 'मुत्ताण' मुक्तेभ्य -अमोचिपत स्वय कर्मबन्धादिति मुक्तास्तेभ्य । 'मोयगाण' मोचकेभ्य -मुच्यमानान अन्यान् प्रेरयऐसे व्यावृत्तछमनाले सिद्ध प्रभु के लिये नमस्कार हो। (जिणाण) राग द्वेष आदि अतरग गनुओं के विजेता से प्रभु के लिये नमस्कार हो। (जावयाण) जो मगनुओं के जीतने के लिये उद्यत भव्यगणों को धर्मदेशनादि द्वारा प्रेरित करते हैं वे जापक है, ऐसे जापक सिद्ध प्रभु को नमस्कार हो। (तिन्नाण) स्य “सार समुद्र से जो पार हुआ है वे तीर्ण है, ऐसे तीर्ण मिद प्रभु को नमस्कार हो । (तारयाण) जो पर को पार कर देते हे चे तारक है, ऐसे तारक प्रमु को नमस्कार हो। (युद्धाण ) रपय बोध को प्राप्त जो होते है वे बुद्ध कहलाते है उनको नमस्कार हो। (योहयाण ) पर को बोध करने वाले प्रभु के लिये नमस्कार हो । ( मुत्ताणं ) मुक्त प्रभु के लिये नमस्कार हो। (मोयगाण) છે આ છા” જેમને આત્માથી સદાને માટે દૂર થઈ ચુકેલા છે એવા વ્યાवृत्तवा मि प्रभुने नभ-४१२ डी (जिणाण) रागद्वेष या मत२ भनुमान विता वा सि प्रभुने नभर है। (जावयाण) २ ४भशत्रुએને જીતવાને માટે ઉદ્યત તૈયાર) ભવ્યગણોને ધર્મદેશના આદિ દ્વારા रित ४२ छे ते १५४ छ मेवा 14s नि प्रभुने नम२४१२ । (तिन्नाण) પિને સસાર સમુદ્રથી પાર થએલા છે તે તીર્ણ કહેવાય છે એવા તીર્ણ સિદ્ધ प्रभुने नभ.२ डी (नारयाण) - भीतने पा२ छ त ता२४ छ साता२४ प्रभुने नभ२४॥२ को (खद्वाण) पात माधन प्रात थयेसा छे ते मुछ उपाय छ भने नभ-४२ डो (पोहयाण) जीतने माघ ४२वावा प्रमुन नमा२ डो (मुत्ताण) भुत प्रभुने नभन्ना२ डो (मोयगाण) मानने
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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