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औपपातिकस
नरंग-भंगुर-रवि-किरण तरुण-बोहिय-अकोसायंत-पउम-गंभीर-वियड-णाभे माहय-सोणंद-मुसल-दप्पण-णिकरिय-वर-कणगच्छरुसरिस-दरवइर-वलियमझे पमुइय-वरैतुरग-सीह-वर-वट्टिय-कडी णामे पम-पिफट-नाम-पनकोशवद् पिकटा-गम्भीरा नाभिर्यस्य स तथा, 'गगावत्तगपयाहिणावत्त-तरग-भगुर-रवि-किरण-तरुण-गोहिय-अकोसायत-पउम-गभीर-वियडणामे' गङ्गाऽऽवर्तक--प्रदक्षिणाऽऽपर्त-तरग-भङ्गुर-रवि-किरण-तरुण-बोधितविकसत्पद्म-गम्भीर – विकट-नाम-तत्र - गङ्गाऽऽर्तकसम्बन्धिप्रदक्षिणावर्ततरगवद्गुरा चक्राकारवर्तुला, रविकिरणतरुणबोधितविकसत्पद्मवद् गम्भीरा, विकटा=विशाला च नाभिर्यस्य स तथा, 'साहय-सोणद-मुसल-दप्पण-णिकरिय-परकणगन्छरुसरिस-बरसइर-बलिय-मज्झे' म्हत-सोनन्द-मुसल-टर्पग-निकरित-चरकनकसरुसदश-वरवन-चलित-मध्य -महत--क्षिममध्य यत्-सोनन्त=निकाष्ठिका, मुसल -प्रसिद्ध , दर्पग-दर्पगदण्ड, निकरितवरकनकत्सरु =निकरित-सारीकृत सर्वथा मशोपित यद् वरकनक-श्रेठसुनर्ग, तस्य सह-समुष्टि , एतेपामितरतरयोगद्वन्द , तै सदृश -चरसे भगवान का इन्द्रियाँ निर्लेप रहता थीं। (पउमरियडगामे) नाभि पनकोश के समान गभार था, (गगावत्तग-पयाहिणावत्त-तरंग-भगुर-रवि-किरण-तरुण-योहिय-अकोसायतपउम-गभीर-वियड-गाभे) तथा-गगावर्तक-सबधी प्रदक्षिणावर्तयुक्त तरग की तरह भगुर, चकसमान गोल, म याह्नकाल्के सूर्यको किरणों द्वारा विकसित पम के समान गभीर एव विशाल थी । (साहय-सोणद-मुसलन्दप्पण-णिकरिय-वरकणगच्छरसरिस-वरवइर-बलिय मज्झे) कटिप्रदेश निकाष्ठिका के मध्यभाग समान, मूसल के मध्यभाग समान, दर्पण के दण्ड के मध्यभाग समान, चलते हुए सोनेकी
प्रमाथी सगवाननी छद्रियो नि ५ २२ती उती (पउमरियडणाभे) नालि पशवी मीर ती (गगावत्तग-पयाहिणावत्त-तरग-भगुर-रवि किरणतरुण-बोहिय-अकोसायत-पउम-गभीर-वियड-णाभे) तथा जापत समाधी પ્રદક્ષિણાવર્તયુક્ત તર ગની પેઠે ભ ગુર, ચકના જેવી... ગોળ, મધ્યાહ્નકાળના સૂર્યના કિરણેથી વિકલા પદ્મ સમાન ગણી તેમજ વિશાળ હતી ( साहय सोणढ-मुसल दप्पण णिकरिय वरकणगन्ज-सरिस-वरवइर-बलिय-मझे) કટિપ્રદેશ ત્રિકાષ્ઠિકા (ઘેડી અથવા તિરપાઈ)ના મધ્યભાગ જે, મૂસલના મધ્યભાગ જેવું, દર્પણના દડના મધ્યભાગ જે, ચળકતા સોનાની ખ;