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औपातिकमत्रे सुजाय-निरुवहय-देह-धारीअसहम्स-पडिपुण्ण-वरपुरिस-लक्षणधरे सण्णयपासे संगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइय'सिरिबच्छंकियवन्' थापसावितरक्षक -श्रीरसेन=शुभचिहरिशेपेग अङ्कितचिहिनत-वक्ष - हायस्थल यस्य स तथा, 'अफरडुय-कणग-स्यय-निम्मल-मुजायनिरुवहय-देह-धारी, अफरण्डुक-कनक-रचक-निर्मल-मुजात-निरुपद्दत-देहधारी, अकरण्डक -- करडुय ' इति देशोय पद, अदृश्यमान करण्डक पृष्ठभागास्थिक यस्य देहस्य स अकरण्डुक, तथा कनकरुचक -सुवर्णवर्णयुक्त, तथा-निर्मल, सुजात, निस्पहत =रोगादियाधारहितो यो देहस्त देह धरतीत्येव जीलो य स तथा, ' अg सहस्स-पडिपुष्ण-चरपुरिस-लक्खण-धरे । अष्टसहस्र-प्रतिपूर्ण-वरपुरुप-लक्षगधर - अष्टोत्तर सहस्रम्-अष्टसहस्र, प्रतिपूर्णम्-अन्यून, वरपुरुषाणा लक्षण-स्वस्तिकादिकम्, तस्य धर -धारक , महापुरुषाणामष्टोत्तरसहस्रपरिमितानि मुलक्षगानि सन्ति, तेषा सर्वेषा धारक --इति भाव । 'सण्णयपासे' सन्नतपार्श्व-सन्नतौअधोऽधोऽग्नतौ पार्थी-पार्श्वभागौ यस्य स सन्नतपार्श्व , ' सगयपासे' सङ्गतपार्श्व -सङ्गतौ-प्रमाणोचितो, पाभुजमूलादध प्रदेशौ यस्य स , प्रमाणयुक्तपार्श्वप्रदेशवानिति भाव । 'सुदरपासे' सुन्दरपार्श्व-दर्शनीयपार्श्वयुक्त , 'सुजायपासे' सुजातपार्श्व -सुन्दरपार्श्ववानित्यर्थ । श्रीवत्सके चिह्न से युक्त था। और प्रभुका शरीर (अफरडुय-कणग-रुयय-निम्मलमुजाय-निरुवहय-देह-पारी) अफरण्डुक-अदृश्यमान पृष्ठभाग की हड्डीयुक्त, तथा सुवर्ण के जैसा निर्मल एव रोगादिक बाधा से रहित था। भगवान् (अट्ठसहस्सपडिपुण्ण-वर-पुरिस-लक्रवण-धरे) न्यूनतारहित ऐसे १००८ स्वस्तिकादिक उत्तम पुरुषों के योग्य लक्षणों के धारक थे। भगवान के शरीरका पार्श्वभाग (सणणयपासे सगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाझ्य-पीण-रइय-पासे) क्रमिक अवनत प्रभुनु श२ ( अकरडय-कणग-यय-निम्मल-सुजाय-निरुवहय-देह-धारी ) અરડુક-અદૃશ્યમાન-ન દેખાય તેવી રીતે વાચા-બરડા-ની રેડવાળુ તથા
નાના વર્ણ જેવુ નિર્મળ તેમજ ગાદિકની પીડા વગરનું હતુ ભગવાન (अदृसहस्स पडिपुण्ण घर-पुरिस-रसण-धरे) न्यूनताडित सेवा १००८ સ્વસ્તિક આદિક ઉત્તમ પુરૂને એગ્ય લક્ષણોના ધારક હતા ભગવાનના शरीरना ५७मानी ला (सण्णयपासे सगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइय पीण इय पासे) भथी नभेडा ता, ति प्रभा । उता, सुहर