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औपपातिकसूत्रे णायग-राई-सर-तळवर-माडंबिय-कोडंविय-मंति-महामंति-गणगदोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद-नागर नेगम-सेहि-सेणावइ-सस्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धि संपरिबुडे विहरइ ॥ सू० १५ ॥ निय-कोविय-मत्ति महामति गणग-दोगारिय-अमन्च-वेड-पीढमद-नागर नेगम-सेटिसेणावह सत्यगह-दूय-संधिकाल सदि अनेक-गगनायक-दण्डनायक राजेश्वर-तत्रर-माडम्बिक-कौटुम्बिक मन्त्रि-महामन्त्रिमाणक-दीपारिका-ऽमात्य-चेट-पीठमर्द-नागर-नैगम-श्रेष्ठि-सेनापति-सार्थवाह-दूत-सन्धिपालै सार्धम् , तर अनेके ये गणनायका समुत्पन्ने प्रयोजने ये गण कुर्वन्ति ते गणनायका , गणप्रधाना इत्यर्थ , दण्डनायका-दण्डनातार , राजान-मण्डलाऽधिपा, ईश्वरा-ऐश्वर्यसम्पन्ना युवराजा , तल्चरा-तल-सौवर्णपदबन्ध , परितुष्टनरपतिप्रदत्तेन तेन तलेन बरा , तलपरा --सन्तुष्टभूपप्रदत्तपट्टयन्धसुशोभितराजकन्या इत्यर्थ, 'माडरिय' माडम्बिका , ग्रामपञ्चशतीपतय इत्यर्थ , यद्वा-सार्धकोश-दयपरिमितप्रान्तविल्छिय विच्छिद्य स्थिताना प्रामागामधिपतय , कोडुपिय-कौटुम्बिका बहुकुटुम्बभरणतत्परा , मन्त्रिण - राई-सर-तलवर-माडविय-कोडविय-मति-महामति-गणग-दोपारिय-अमञ्च चेडपीढमह-नागर-नेगम-सेहि-सेणावइ-सत्यवाह-दय-सधिवाल सद्धिं सपरिवुढे विहरइ) अनेक गणनायकों से-अयोजन उपस्थित होने पर जो गण तैयार करते थे ऐसे लोगों से, दण्टनायको से, माण्डलिक राजाओं से, ईश्वरों से युवराजों से, तलवरों से राजाने संतुष्ट होकर जिन लोगों को सुवर्णका पट्टबन्ध दिया, उस पट्टबन्ध से सुशोभित राजातुल्य पुरुपों से, माइनिकों से-पाँच सौ ग्रामों के अधिपतियों से, अथवा ढाई ढाई कोगमा अन्तर जिन दो गामों के बीच मे होता है ऐसे अनेक गामों के अधिपतियों से, कौडम्भिकों से-कुटुम्ब के भरण-पोषण मे तत्पर व्यक्तियों से विय-कोडुपिय-मति-महामति-गणग-दोबारिय-अमच्च-चेड़-पीढमद नागर-नेगम-- सेद्वि-सेणायइ-सत्यवाह-दूय-संधिवाल सद्वि सपरिवुडे विहरइ) मने गनायકેથી પ્રોજન ઉપસ્થિત થાય ત્યારે જે ગણું તૈયાર કરતા હતા તેવા લોકેથી, દડનાયકેશી, માડલિક રાજાએથી, ઈશ્વરેથી યુવરાજોથી, તલવથી રાજાએ સ તુષ્ટ થઈને જે લોકોને સુવર્ણ પદૃબ આપે હોય તે પબધથી સુશોભિત રાજ જેવા પુરૂથી, માડમ્બિકાથી પાચ ગામના અધિપતિઓથી અથવા અહી અહી ગાઉનું અતર જે બે ગામોની વચ્ચે હોય એવા અનેક ગામના અધિપતિઓથી, કૌટુંબિકેથી કુટુંબના सरए ५२ व्यतिमाथी, मानसाथी,यिनी सभी (निर्णय )