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औपपातिक
मूलम् तस्स णं पुरिसस्त वहवे अण्णे पुरिसा दिवणभइ-भत-वेणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसिअं पवित्तिं णिवेदेंति । सू० १४ ॥
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टीका--तस्स ण पुरिसस्स' इत्यादि, तस्य भगवद्वार्ताहरस्य पुरुषस्य भृत्यस्य ' वहवे अण्णे पुरिसा' बहवोऽन्ये पुरषा -- राजसेवका, ते कादृशा' इत्याह-'दिण्ण - भइ भत्त-वेयणा' दत्त-मृति-भक्त-बेतना -भृति स्वर्णमुद्रादिरूपा, भक्तममिलती थी । ( भगवओ परिचिनाउए ) भगवान्
आजीविका
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कन कहा से निहार कर किस ग्राम में समवसृत हुए है इस समाचार को जानने के लिये वह नियुक्त किया गया था । तथा [ भगवओ तद्देवसिय परित्ति fract ] भगवान् के दैनिक वृत्तान्त का भी - अर्थात् आजदिन भगवान् इस नगर से विहार कर इस नगर में विराज रहे हैं इस प्रकार को उनकी दैनिक विहारवार्ता का भी ध्यान रसता था । यह वृत्तान्त राजा के निकट निवेदन करता था ॥ सू० १३ ॥ ' तस्स पणं पुरिसस्स वहवे' इत्यादि,
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[ तस्स - पुरिसंस्स बहवे अण्णे पुरिसा ] इम पुरुष के हाथ के नीचे और भी बहुत से अनेक पुरुष कि जिन्हे ( दिष्ण - भइ - भत्त - वेयणा ) इसकी तरफ से सुवर्णमुद्रादिरूप भृति, एवं अन्नादिरूप भक्त इस प्रकार दोनों तरह का
येथे। ५३ष राभेो। तो डेनेने गल तरथी ( निउलकयवित्तिए) भोटी भालुविडा भजती इती [ भगवओ पवित्तिवाउए ] ભગવાન ક્યારે કયાથી વિહાર કરી કયા ગામમા સમવત થયા છે” એ સમાચાર જાણવાને भाटे तेनी निभायुद्ध ४रेसी हुती तथा [ भगवओ तद्देवसिय पविति णिवेदेइ ] ભગવાનને દૈનિક વૃત્તાન્ત=અર્થાત્ જરાજ ભગવાન આ નગરથી વિહાર કરીને આ નગરમાં મિગજે છે એ પ્રકારની તેની દૈનિક ( દિવસ મ બધી ) વિહારવાર્તા નું પણ ધ્યાન રાખતા હતા આ વૃત્તાન્ત રાજાની પાસે નિવેદન
उरतो तो ( सू १३ )
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तस्स ण पुरिसस्स बहवे ' धत्याहि
( तस्स ण पुरिसम्स बहवे अण्णे पुरिसा) ते पुरुषना हाथ नीचे मील घायुषो हता भने ( दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा ) तेना तरस्थी સુવર્ણ મુદ્રારૂપ ભૂતિ તેમજ અન્નાદિરૂપ ભક્ત-ખારાક એમ બન્ને પ્રકારનું વેતન