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पीयूषधषिणी-टीका ८ ११ फणिवर्णनम हिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे
खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए नीतिदयादाक्षिण्यादिभि समृद्ध =सम्पन्न , 'मुइये मुद्रित =प्रसन्न , अथवा 'मुइये' इति निद्रोपमातृकाथों देशोगन । उक्त च 'मुटये जे होट जोणिसुद्धे' इति । निटोंपमातृक -निहापाया मातुरपय पुमान । 'यत्तिए' क्षत्रिय -शुद्धक्षत्रियगोगोपन्न । 'मुद्धाहिसित्ते' मूदाभिषिक्त -मर्वरपि प्रयन्तगजै प्रतापमसहमानैर्नान्यथाऽस्माक गतिरिति पग्भिाव्य मूर्दभिर्मस्तकैरभिषिक्त सम्मानितो मूद्राभिषिक्त । 'माउपिउमुजाए' मातापित्रमुजात - मातृभक्त पितृनिदेगकारको मिनीतश्च 'दयपत्ते' टयाग्राम --निसर्गकारुणिक । 'सीमफरे' सीमाकर -सीमा कुलमर्यादा, तस्या कर कारक । 'सीमंधरे' सीमापर =कुलमर्यादाधारक 'खेमंकरे 'क्षेमद्दर : लल्यवस्तुपालनगील । 'खेमधरे' क्षेमधर -क्षेमस्य धारक , लन्धस्य परिपालन क्षेम -
चित्त ररा करते थे। अथवा निटोंप माता के ये पुन ये। (सत्तिए) शुद्ध क्षत्रिय पश मे ये उपन्न हुए थे । (मुद्धाहसिते ) उनके प्रबल प्रताप को सहन करने म असमर्थ हो उनके राज्य की चतुर्दिग्वती सीमाओं के राजा लोग उनके चरणों म अपना शिर नमाते थे। (माउपिउमुजाए) यह माताके भक्त एव पिता की आजा के परमपालक थे। (दयपत्ते सीमकरे सीमधरे खेमकरे खेमधरे ) ये स्वभाव से दयाल थे, यह कुलमर्यादा के कारक थे, तथा उमफा आराधक भी थे, लन्ध वस्तु के पालक एव उसके धारक भी थे । अर्थात्-प्रजा-हित के योग्य वस्तुओं को प्राप्त करते थे, और प्राप्त वस्तुओं का रक्षण करते थे, उन पर स्वय
समृद्ध (मुइये) ते सहा प्रसन्नचित्त २॥ ४२ता उता मया निर्दोष भाताना ते पुत्र छत (सत्तिए ] शुद्ध क्षत्रिय मा ते उत्पन्न यया उता (मुद्धाहिसित्ते) तमना अस तापने मन ४२वामा समर्थ, तमना રાજ્યની ચારેબાજુની સીમાઓના રાજાલકે તેમના ચરણોમાં પોતાના
१२ नभावता ता (माउपिउसुजाए) त भाताना Hd, तभी पिताना मानाना ५२म पास इता (दयपत्ते सीमकरे सीमधरे खेमकरे सेमवरे ) આ વભાવે દયાળુ હતા તેઓ કુળમર્યાદાનું પાલન કરતા કરતા અને
સારાધક પણ હતા મેળવેલી વસ્તુના પાલક તેમજ તેના ઘરાક પણ હતા અર્થાત્ પ્રજાહિતને ચગ્ય વસ્તુઓને પ્રાપ્ત કરતા હતા અને