SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७ अभिप्राय व्यक्त किया है । इतना ही नहीं परन्तु उस राजकुमार का, रूप लावण्यवती आठ राजकन्याओके साथ विवाह हवा और युवा अवस्था को प्राप्त वह कुमार उत्तम महल में पूर्वपुण्योपार्जित शब्दादि विषयों का अनुभव करता हुवा आनन्द निमग्न था, ऐसे समय श्री महावीर प्रभु का आगमन सुनकर दर्शन तथा उपदेश सुनने के लिये उत्साहित होकर जाना, वह प्रसङ्ग आजके धनिकों के लिये महान् आदर्श और उपदेशका काम करता है । धनीपन की सार्थकता धर्मी होने में है, न कि प्रथभ्रष्ट होकर सुरापान, मांसाहार और विषय सुख के मार्ग की प्रवृत्ति में । आज का धनिक वर्ग त्यागकी अपेक्षा भोगों में रहकर ही मनुष्य जन्म की सार्थकता समझता है, तब वे महापुरुष जो जीवन के पहले प्रसङ्ग में प्रथम बार ही संसार त्याग का उपदेश सुनकर उसी समय वे संसार बन्धन को तडाक से तोडकर विरक्त वनजाते और भवोभव सञ्चित उपद्रवी कर्मों का नाश करने के लिये प्रधान तप को अङ्गीकार कर लेते थे । वह तप भी कोई साधारण नहीं परन्तु गुणरत्न आदि कठिन तप को अङ्गीकार करने में ही वे अपने जीवन की महत्ता समझते थे । जालिकुमारने उक्त तप को धारण किया । वे ऐसे महातप द्वारा शरीर का ही नहीं परन्तु कर्मों का शोषण करके अन्त में सर्वार्थ सिद्ध विमान को प्राप्त हुए और भविष्य मोक्ष प्राप्त करेंगे । इसी प्रकार शेष नव कुमार जो श्रेणिक राजा के ही पुत्र थे उनका भी वर्णन इसी प्रथम वर्ग में किया गया है । -: द्वितीय वर्ग : (२) दूसरे वर्ग में भी राजगृह नगर के अधिपति श्रेणिक राजा, धारिणी रानी के पुत्र दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, शुद्धदन्त, हल, द्रुम, द्रुममसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पुण्यसेन, इन तेरह राजकुमारो का वर्णन जालिकुमार की तरह होनेसे संक्षिप्त प्रकार से समझाया गया है ।
SR No.009333
Book TitleAnuttaropapatik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy