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अनुत्तरोपपातिक सूत्रे पक्षिविशेपस्तस्य जवा, ढेणिकालिकाजवा ढेगिकालिका-पक्षिविशेपस्तस्या जड्डा, इमाः स्वभावतो निमांसशोणिता भवन्ति, अतस्तत्सादृश्यमुक्तम् । एवं तय जधे शुष्के रूक्षे निर्मासे संजाते इत्यर्थः ॥ सू० १८ ॥
मूलम्-धण्णस्स जाणूणं अयमेयारूवे० से जहा० कालिपोरेइ वा, मयूरपोरेइ वा, देणियालियापोरेइ वा, एवं जाव शोणिततया ॥ सू० १९ ॥
छाया-धन्यस्य जान्योरिदमेतद्रूप०, तद्यथा कालिपति वा, मयूरपर्चेति वा, टेणिकालिकापति वा, एवं यावत् शोणिततया ॥ १९॥
टीका-'धण्णस' इत्यादि । कालिनामा वनस्पतिविशेपः,तस्य पर्व सन्धिस्थानम् । मयूरस्य, टेणिकालिकापक्षिविशेषस्य च पर्व-जानुरूपसन्धिस्थानं शुष्कं रूक्षं निमांसं शोणितरहितं भवति तद्वत्तस्य जानुद्वयं संजातम् ॥ सू० १९ ॥ शुष्क, रूक्ष एवं मांस रक्त रहित होगई थी। इन पक्षियों की जंघा ऍ स्वभाव से ही निमोस एवं रक्तरहित होती है, अत: उनकी इन से उपमा दी गई है । धन्यकुमार अनगार की भी जंघाएँ उनके समान पतली हो गईथीं ॥ सू० १८ ॥
'धण्णस्स' इत्यादि. जिस प्रकार काली नामक वनस्पति विशेष के सन्धि स्थान (जोड), मयूर एवं टेणिकालिका 'पक्षिविशेष' के घुटनों के सन्धिस्थान शुष्क, रूक्ष, मांस, एवं रक्त से रहित होते हैं, उसी प्रकार धन्य अनगार के दोनों घुटने शुष्क, रूक्ष, एवं मांस रक्त रहित हो गये थे सू० १९ ॥ (પક્ષિવિશેષ)ની જ ઘા સમાન શક્ક, રૂક્ષ અને માંસ-રત-રહિત થઈ ગઈ હતી આ પક્ષીઓની જ ઘાઓ સ્વભાવથી જ નિર્માસ તેમજ રકત-રહિત હોય છે એટલે અહીં એની ઉપમા આપવામા આવી છે. ધન્યકુમાર અણગારની જંઘાઓ પણ તેના જેવી यातनी 28 10 उती. (सू० १८)
___ 'धण्णस्स' त्या व्या शत sell नामे वनस्पति विशेष सन्धिस्थान (3), भार तभ०४ aslel (पक्षिविशेष) नi ढीयनु सन्धिस्थान शु, रुक्ष, માંસ તેમજ રત–રહિત હોય છે. એવી રીતે ધન્ય :અણુગારના બન્ને ઢીંચણ શુષ્ક, २१क्ष भर भांस-२४तथी २डित. २४ गया हता (सू०. १८)..