SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागमों की टीका स्थानकवासी समाज की सुदृढ रचना जैनागमों के आधार पर ही है तो फिर आजतक स्वकीय संस्कृत टीका क्यों नहीं लिखी गई ? क्या स्थानकवासी समाज में संस्कृतज्ञ विद्वान नहीं हुए ? इस प्रकार का प्रश्न स्वाभाविक उपस्थित हो सकता है। इस प्रश्न के जवाब में हम अन्य मतों के शास्त्रोंपर दृष्टि डालेंगे तो सहज ही में हम जान सकेंगे कि-दो हजार वर्ष के पूर्व में प्रत्येक मतों के शास्त्र उसी भाषा में थे कि जिस भाषा में वे लिखे गये थे, उसी से हम जान सकते हैं कि हमारे पुराणे आचार्यों में इतना ज्ञान था कि वे भले प्रकार से जैनागमों के रहस्य को समझने में विद्वान थे, और दूसरों को समझाने में भी पूर्ण निपुण थे। उस समय किसी भी धर्म में शास्त्रों की मूल भाषा को समझाने के लिये अन्य भापाका सहारा लेने की आवश्यकता नहीं समझी गई थी। आज भी न्याय व्याकरण का अनुवाद लिखना व छपाना विद्वान् पुरुष ठीक नहीं मानते हैं । परन्तु जब संस्कृत प्राकृत के स्थानपर अन्य भाषाओंका पढना पढाना शुरू हुवा तव धर्मशास्त्रों का ज्ञान वनाये रखने के लिए धर्मगुरुओं ने वर्तमान भापाओं में अनुवाद करने का विचार किया और उसी प्रकार वे कार्य रत बने । आजसे कितनीक शताब्दियों के पूर्व मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के विभिन्न यतियोंने तथा आचार्योने जैनागौं पर संस्कृत नियुक्ति, अवचूरि, चूर्णि, भाष्य, टीका लिखी, जिसे आज सैकडों वर्ष हो गए, उस समय की टीका की प्रणाली में और आज की प्रणाली में अन्तर होना साधारण चात है, क्यों कि पुरानी टीकाओं में जहाँ सरल विषय था वहा कठिन शब्दाडम्बरों से दुर्बोध करदिया और जहा जटिल विषय था उसका स्पष्ट विवरण न करने से वह भी दुर्योध रह गया, तथा पुराणी टीकाओं में विपर्यास याने सूत्रविरुद्ध अर्थ प्रतिपादन करने लगे और जिनभाषित सत्य तत्व लुप्तमाय होने लगा, तथा मनमाने पंथ शुरू हो गये और वे मनमाने तत्त्व समझाने लगे-किसीने निश्चय नयको मुख्य रखकर व्यवहार मार्ग
SR No.009333
Book TitleAnuttaropapatik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy