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अर्थबोधिनि टीका वर्ग ३ धन्यकुमारवर्णनम्
जादि निस्सरति तदा स पुरुपाठीर्मानवान उच्यते, नव्य शरीरागाहनाविशेषो मानमत्र गृद्यते । उन्मानम् = ऊर्ध्वमानं यत्तु दायामारोग्य नोलनेऽर्द्धसारभमाणं भवति तत् । प्रमाणं = निजामुलीभिरप्टो चरशतामुपरिमितोच्छ्रायः मानं च उन्मानं च प्रमाणं चेति मानोन्मानप्रमाणानि, तः प्रतिपूर्णादिसंपन्नानि, अत एव सुजातानि यथोचितायत्रसन्निवेशयन्ति सर्वाणि सफलानि अङ्गानि= मस्तकादारभ्य चरणान्तानि यस्मिंस्तत्, अत एव सुन्दरम = पुर्यस्य स तथोक्तः। शशिसौम्याकारः=शशी=चन्द्ररतद्वत्सौम्यः रमणीय आकार = स्वरूपं यस्य सः । प्रमाण गहरा, शरीर - प्रमाण लम्बा व शरीर प्रमाण ही चौडा) आदि में घुसे, और उसके घुसने से यदि एक द्रोण (परिमाण-विशेष) जल बाहर निकले तो उस पुरुष आदि को मानवान (सान से युक्त ) कहते है । यहाँ मानवान् पुरुष आदि के शरीर की अवगाहना विशेष को मान कहते हैं | उन्मान - तराजू में रखकर नोलने से जो अर्ध भार (एक प्रकार का परिमाण) हो उसे उन्मान कहते हैं | प्रमाण - अपनी अंगुली से एक सौ आठ अंगुली उंचाई को प्रमाण कहते है ।
इन मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त होने के कारण यथायोग्य अवयवों की रचनावाला होने से जिस पुरुष का समस्त अंग सुन्दर हो उसे 'मानोन्मानप्रमाणप्रतिपूर्णसुजातसुन्दराङ्ग' कहते है । इस प्रकार की शरीरसम्पदावाला वह धन्य कुमार चन्द्रमा के समान सौम्य आकारवाला, सुन्दर कान्तिवाला, सभी के हृदय को आह्लादित करनेवाला तथा सर्वोत्कृष्ट रूप लावण्य करके युक्त था ।
박원
માન—કાઇ પુરુષ આદિ જળથી ભરપૂર ભરેલા કુંડ (શરીર જેટલા ઉ અને પહેાળા) આદિમા પેસે અને તેના પેસવાથી જે એક દ્રોણ (પરિમાણવિશેષ) જળ મહાર નીકળી જાય તા તે પુરુષ આદિને માનવાન (માનવ યુક્ત) કહે છે. અહીં માનવાન पुरुष महिना शरीरनी अवगाहनाविशेषने भान हेवामा आवे छे 'उन्मान' -नाવામા રાખી તેલવાથી જે અભાર ( એક પ્રકારના પરિણામ ) થાય તેને ઉન્માન छे' प्रमाण 'पोतानी सांगजियोथी १०८ मेसोमा मांगुण अाई ने પ્રમાણ કહે છે
આ માન, ઉન્માન અને પ્રમાણથી ચૂકત હોવાને કાણે ચાયેગ્ય અવયવોની श्शूनावाजा होवाथी ने पुरुषतु समस्त अग सुन्दर होय तेने " मानोन्मानप्रमाण प्रतिपूर्णसुजात सर्वाद्गमुन्दराग " हे छे आ लतनी शरीर मभ्यहावामा ते धन्य કૂમાર ચન્દ્રમા સમાન સૌમ્ય આકારવાળા, સુન્દર કાન્તિવાળા, સટ્ટનાં હૃદયને માદલાદિત કવાવાળા તથા સર્વોત્કૃષ્ટ રૂપ લાવણ્યે કરી ચુકત હતા