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________________ - मुनिकुमुदचन्द्रिका टीका, अष्टमवर्गी पक्रमः ܃ अष्टमो वर्गः ॥ मूलम् ॥ जइ णं भंते! समणेणं जाव संपतेणं अट्टमस्स अंगस्स : अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, अट्टमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेर्ण के अटे पण्णत्ते ? | एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपतेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्स दस : अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - काली सुकाली महाकाली कवहा • सुकण्हा महाकण्हा वीरकण्हा य बोद्धवा रामकण्हा सहेव य । f पिउसे कण्हा नवमी, दसमी महासेणकण्हा य ॥ १ ॥ जड़ पणं भंते! अट्टमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते!- अज्झयणस्स. समणेणं जाव संपतेणं के अडे पण्णते ? ॥ सू० १ ॥ : ... 1 २३५ '॥ टीका' ॥ 'जणं भंते ' इत्यादि । 'जइ णं ते! समणेणं जाव संपतेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स अंगस्स अयम पण्णत्ते' यदि खलु ● अध्ययनों को जानना चाहिये ।। सू० १३ ॥ हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने अन्तकृतदशा के सातवें वर्ग के भाव को इस प्रकार निरूपण किया है ।। ॥ सातवाँ वर्ग समाप्त ॥ ॥ आठवाँ वर्ग जम्बूस्वामीने पूछा- हे भदन्त ! श्रमण भगवान महावीर अध्ययनाने लगुवां लेभेो (13) હું જ બૂ ! શ્રમણુ ભગવાન મહાંવીરે મૃતકૃતદશાના સાતમા વર્ગના ભાવને એ प्रमाणे. निश्च यु छे. (सू० १) सात वर्ग सभाप्त. साठभी वर्ग स्वाभीमे पूछयु-डे लहन्तं ! श्रभ्णु भगवान भडोवीरे "अन्तङ्कृतदृशा २९
SR No.009332
Book TitleAntkruddashanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages392
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size24 MB
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