SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २८६ उपासकदशास्त्र पीलणकम्मे, (१२) निल्लछणकम्मे, (१३) दवग्गिदावणया, (१४) सरदहतलायसोसणया,(१५)असईजणपोसणया ७॥सू ५१॥ ____ छाया-तदनन्तर च खलु उपभोगपरिभोगो द्विविध' प्रज्ञप्तः, तद्यथाभोजनत' कर्मतश्च । तत्र खलु भोजनत' श्रमणोपासकेन पश्चातीचारा ज्ञातव्या न समाचरितव्याः, तद्यथा-सचित्ताहारः, सचित्तप्रतिवद्धाहारः, अपकीपधिभक्ष णता, दुष्पकौपधिभक्षणता, तुच्छोपधिभक्षणता । कर्मतः खलु श्रमणोपासकेन पञ्चदश कर्मादानानि ज्ञातव्यानि न समाचरित व्यानि, तद्यथा-(१) इङ्गालकम, (२) वनकर्म, (३) शाकटिकर्म, (४) भाटीकर्म, (५) स्फोटीम (६) दन्तवाणिज्य, (७) लाक्षावाणिज्य, (८) रसवाणिज्य, (९) विपवाणिज्य, (१०) केशवाणिज्य, (११) यन्त्रपीडनकर्म, (१२) निर्लाञ्छनकम, (१३) दवाग्मिदापन,(१४) सरोहदतडागशोपण,(१५) असतीजनपोपणम् ७ ॥१॥ टीकार्थ-'तयाणतर चे'-त्यादि इसके अनन्तर उपभोगपरिभोगपरि माण व्रत है, वह दो प्रकार का है-(१) भोजनसे और (२) कर्मसे । पहल भोजनसे श्रमणोपासकको पाच अतिचार जानना चाहिए, सेवन नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं-(१) सचित्ताहार, (२) सचित्तप्रति यद्धाहार, (३) अपक ओषधि (वनस्पति) का खाना, (४) अधकच्ची (मुश्किलसे पकनेवाली ) ओषधि खाना, (५) तुच्छ ओषधिका खाना। __ कर्मसे श्रावकको पन्द्रह कर्मादान जानना चाहिए परन्तु उनका सेवन नहीं करना चाहिए । वे ये है-(१) इगालकम, (२) वनकम, (३) शाकटिककर्म, (४) भाटीकर्म, (५) स्फोटोफर्म, (६) दन्तवाणिज्य, (७) लाक्षावाणिज्य, (८) रसवाणिज्य, (९) विषवाणिज्य, (१०) केश टीमार्थ-'तयाणतर' चे-याहित्यारपछी परिमापरिभात छ,२२ પ્રકારનું છે– (૧) ભેજનથી અને (૨) કર્મથી પહેલા ભોજનથી શ્રમણોપાસકે પાચ અતિચાર જાણવા જોઈએ, સેવવા ન જોઈએ, તે આ પ્રમાણે છે –(૧) સચિત્તાહાર, (२) सथित्तप्रतिमद्धार, (3) २५५४१ मोवधि (वनस्पति) भावी ते, (४) मा (યશ્કેલીથી પાકનાર) ઔષધી ખાવી તે (૫) તુચ્છ ઔષધી ખાવી તે કર્મથી શ્રાવકે ૫દર કર્માદાન જાણવા જોઈએ પણ સેવવા ન જોઈએ, તે આ प्रभारी -(१) Umes, (२) नमः, (3) टिभी, (४) सारी (५) २८ ४म, (6) तवाणिज्य, (७) क्षारय (८) २सवाशिलन्य, (6) विgarh,
SR No.009331
Book TitleUpasakdashangasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy