________________
५३६ च तोरणानि च यस्यां सा राया, नत्र गोपुराणि-मोत्यः अामा'-प्राकारो परिस्थान विशेषाः, चरिफा-नगरमागतरयासोमार्ग तया-पपम्नितानिसत. क्षिप्तानि मारमानानि श्रीराणि-माडागाराणि फोगाराणि च यम्यांसा वधा, तो विपदः कर्मधारय । कष्णमायुदेकर भूमी परणापानमन्दन अमर फकारामधान्याः मासरगोपुरादिक सिमितमिध्वर्य, तपा- सरस्सरस्स अनुकरणशब्दोऽयम् निपनन क्रियाविशेषण परमिनले सनिपतिता-अमरकंका रामधानी मरम्सरस्सेनि शन्द शाणा भूमी पतितत्यर्थः । ननः सलु स पनामी राना अमरका राजधानी समग्नमाकाराठिया यानन्-धरणितले सनिपतिता दृष्ट्वा भीतः प्रस्त , उद्विग्न', सनातभय , द्रौपद्या देव्या शरणमुपेति प्राप्नोति, ततः खलु सा द्रौपदी देवी पानाम रामानमेवमादी-कि खलु स्त्र हे देवानु प्रिय ! न जानासि कृष्णस्य वासुदेवस्योतमपुरुषस्य विप्रिय कुर्वन् मामिह अत्र गलियों को अदारियों को, चरिकाओं को, श्री गृहों को कोशागारा की श्री कृष्ण ने ध्वस परदिया। तथा वह अमरकमा राजधानी भी मरसर शब्द करती हई उस गर्जना पूर्वक किये गये चरणाघात से जमीन पर गिर पडी। (तरण से पउमणामे राया, अमरकका रापहाणि सभाग जाव पासित्ता, भीए दोवई। देवीए सरण जवेइ) तय पद्मनाभरात अमरकका राजधानी को प्राकार गोपुर आदि की ध्वस्त अवस्थावाला देखकर अत्यन्त भीत हुआ अस्त हुआ, अहिग्न हुआ। और सजात भय सपन्न होकर द्रौपदी देवी की शरण में पहुंचा। (तरण सा दोवई देवी, पउमनाम राय एव चयासी) तब उस द्रौपदी देवी ने पमनाम राजा से इस प्रकार कहा-(किण्ण तुम देवाणुप्पिया! न जाणासि कण्ह કકા રાજધાનીની શેરીઓને, અગરીઓને ચરિકાઓને, શ્રીગ્રહને, કેશા ગારને શ્રીકૃષ્ણ નષ્ટ કરી નાખ્યા તેમજ તે અમરક કા રાજધાની પણ સ સક શદ કરતી ગજનાપૂર્વક કરવામાં આવેલા ચરણાઘાતથી જમીનદોસ્ત થઈ ગઈ
(तएण से पउमणाभे राया, अमरकका रायहाणि समग्ग जाव पासित्ता, भीए दोबईए देवीए सरण उवेइ)
પદ્મનાભ રાજા અમરક કા રાજધાનીના પ્રાકાર, ગપુર વગેરેને વિનાશ જોઈને ખૂબ જ ભયભીત થઈ ગયો, ત્રસ્ત થઈ ગયે તેમજ ઉદ્વિગ્ન થઈ ગયા भने समतलय सपन्न थाने श्रीपही हवानी शशे पायो (तपण सा दावई देवी पउमनाभ राय एव वयासी) त्यारे द्रौपदी वा पानाक રાજાને આ પ્રમાણે કહ્યું કે –