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माताधर्मपाल यूय हे देशानुमिया: 'भानो पदमणाम गया' नो पमनामी रामा'अहमेव जेता मामि, न तु पानागो गना, मिनामेन रामा सा पुयामि, इत्युक्त्या पदुमदर' दरोनि-पाणी-गप्प बासुदेव पन्न नाभेन सह योधु रधमाधान उत्पः। माय पदनामी राजा तौलो पागच्छति, उपागत्य ' मैग' शेत-गोपीहारपाल गोदुम्मान-दाराच धवल शुगल ' तगमोल्लिपमिदारहदानिगारा । तगमोलिया। मल्लिका अय देशीयः शद मिन्दुगारो निर्गुण्डी, कुन्द-न्दनाम्ना पमिदः येतपुष्पविशेषः इन्दुभन्दस्तद्वन् सनिकारा -ममा यम्प म तं, निययालम्म' निनाम्य भएकी यसेनाय 'हरिजण पननन-पोत्पादक, 'रिउमेग पिणासार' रिपुमेन्य पिनाशकर शत्रुसन्यालहारक पाशनन्य भर पाश्चायनामक शर 'परामुमा पारा मृशति हस्ते गृहाति, पगपृश्य 'मुपायरिय करे।' मुवातपूरित मुरसाने भाव फरोति-पादयतीत्यर्थः । तत' खलु वस्य पद्मनाभस्त्र तेन गपशब्देन 'वल स्त चिहध्वज पताका चाला पनाते यह तुम्हें ऐसा नही बनाता-परन्तु ऐसा तुम लोगों का मन में धारा विगार सफली भूत नहीं हुआ अतः देवानुप्रियो । अब देगो-में उमके साथ युद्धरत होता है इसमें मेरा जीतू गा पद्मनाभ राजा नहीं । ऐसा करकर वे कृष्णवासुदेव रथपर सवार हो गये। और सवार होकर वे वहा पटेंचे जहा पदमनाभ राजा था। वहां पहुँच कर उन्हों ने अपने पाचजन्य श्वेतशख को जो अपनी सेनाको हर्ष का जनक एव शत्रु सेना का सहारक था एव गोक्षीर तथा हार के जैसा धवल वर्णवाला था उठाया। इसकी प्रमा मलिका नि कुदपुष्प एव चन्द्रमाके जैसी उज्ज्वल थी।(परामुसित्ता मुहवायपूरिय कर उसे उठाकर उन्हों ने मुंह से बजाया-(तण्ण तस्स पउमणाहस्त तण सखसद्देण बलइभाए हय जाव पडिसहित उम पदमनाभ की सेना તેની સાથે હું હવે મેદાને પડ છ આમા વિજય મને જ પ્રાપ્ત થશે, પદ્મ નાભ રાજાને નહિ આમ કહીને કૃષ્ણ-વાસુદેવ રથ ઉપર સવાર થઈ ગયા અને સવાર થઈને જ્યા પદ્મનાભ રાજા હતા ત્યાં પહોચ્યા ત્યાં પહોંચીને તેમણે પિતાના પાચજન્ય સફેદ અને-કે જે તેમની સેના માટે હત્યાક તેમજ શત્રુઓની સેના માટે સહાર રૂપ હ તથા ગાયના દૂધ અને ઉજ જે સફેદ હોહાથમાં લીધે તે શેખની કાતિ મલિકા નિ કે भने य-5 2ी ती (परामुसित्ता मुहवायरिय करेइ) ईन त भुमया qय ( तस्स पउमणाहस तेण सससदेण जाव पडिसेक्षित
તે રાજાની સેના -
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