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बताया
पणनाभस्य रातो भरने द्रौपदरीदेवी यारी काचिद्रौपदीमशी दीपनाम रातो
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चाप्यभवन् अय भावःटा तु सा मयान सम्प ज्ञाता नापि सम्परिचित इति । स कृष्णो पावन्नारदमेव मनादीत् हे भियाः युमापा' पुत्रकम्म पूर्वकर्म - पूर्वकृत कर्म, युष्माभिरेवेया गर्म पूर्व कामिप । वालु म नारदः कृष्णेन मुक्त मन उतनी विद्यामारादयति जय यस्याः एवदिशः प्रादुर्भूतस्तामेन दिशं प्रतिगतः । ततः खलु स कृष्णो देवदूत यति= धायईसठे दीवे पुरस्मद् दाहिणभरस्याम अमरका रागहाणि गए तत्थ ण मग पउमनाभस्स रण्णो भवसि दोई देवी जामिया दि पुव्वा यावि होत्या, तरण कण्हे वासुदेवे कच्युल एप वयामी-तुभ चेवण देवाप्पिया | पुत्रकम्म-तणं से कारण कण्हे वासुदेवेण एव चुत्ते समाणे उप्पयणि विज्ज आवारे, आवाहिता जामेव दिसि पाउञ्भु तामेव दिसि पडिगए) सुनो में तुम्हें बताता है - हे देवाणुप्रिय ! मैं किसी एक समय द्वितीय धातकी खड द्वीप में पूर्व दिग्भागवत दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकका नाम की राजधानी में गया हुआ था वहा मैंने पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी देवी जैसी - और एक नारी देखी थी - परन्तु मैं उसे अच्छी तरह नहीं जान सकान उससे परिचित ही हो सका। नारद की ऐसी बात सुनकर कृष्ण वासुदेव ने उनसे कहा हे देवानुप्रिय ' आपने ही ऐसा कार्य सब से पहिले किया है - इसके बाद उन कन्उल्ल नारदने कृष्ण वासुदेव के द्वारा दाहिणद्धभरहवास अमरकका रायहाणि गर, तत्थ म प मनाभस्रो भवण स्रि दोषई देवी, जारिसिया दिट्ठबुवा यावि होत्या, तरणं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्ल एव वयासी तुम्भ चेवण देवाणुपिया ! एव पुत्र कम्म-तरण से कच्छुल नारए कण्हेण वासुदेवेण एव वृत्ते समाणे उत्पयणि विज्ज आवाइ, आवाहित्ता जामेव दिसि पाउए तामेव दिखि पडिगए )
સાભળે, તમને હુ બધી વિગત ખતાવું છુ હું રેવાનુપ્રિય ! કાઈ એક વખતે క ધાતકી ષડદ્વીપમા, પૂર્વ દિશા તરફના દક્ષિણા ભરત ક્ષેત્રમા, અમરકકા નામે રાજધાનીમા ગયા હતા ત્યા મે પદ્મનાભ રાજાના ભવનમા દ્રૌપદી દેવી નારી જોઈ હતી. પશુ હુ તેને સારી પેઠે એળખી
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શકય ન કૃષ્ણવા
પરિચિત થઇ શકી. નારદની આ વાત સાભળીને
યિ ! સૌ પહેલા તમે જ આ કામ કર્યું છે પરબની આ વાત સાભળીને
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ત્યાર