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__mart देव्यै 'आसोपणिप ' अपमापनी नितां 'दलयर' द्वाति मुसममुप्ता द्रौपदी गादनिद्रयाऽऽफ्रान्ता कापनित्यर्थः । दत्य-गादनिद्रानी कसा द्रौपदी देवी गृहीत्वा तया उष्टया देवमम्बन्धिन्यागत्या याद कोरामरकका राजधानी यी पमनाभस्य भान कामोपागर उनि, उपागत्य पमनामस्प भाने ' असोगर णियाए ' अशोकानिकापाम् भगोकवाटिकाया द्रौपदी देवी स्थापयति, स्थापयित्वा ' आगोषगि भाहरइ ' आमापनी निद्रामपारति, अपहत्य दोघईए देवीए ओसोपणिय दलया, दलित्ता दोबई देवगिरा, गिण्हसा तीए उक्किहाए जार जेणे अमरफका जेणे पउमणाभरस भवर्ण तेणेच उचागच्छा, उचागरित्ता पउमणामस्म भवणसि असोगवाण याए दोवह देवों ठवेह ठारित्ता ओमोवणि अपहरड, अवररित्ता जेणव पउमणाभे तेणेच उवागच्छइ,उवागरिकत्ता एव व्यासी-एस ण दवाणु पिया ! मग हरियणाउराओ दोवई डर रव्यमाणीया, तब असोगवणियार चिट्ठइ, अतोपुर तुम जाणिसि तिहजामेव दिमि पाउन्भूए तामय दिसि पटिगए) पहा आकर उसने द्रौपदी देवी को गाद निद्रा म तुला दिया, सुलाकर फिर उसने उस द्रौपदी को वहा से उठाया-आर ३० कर फिर वह उस उत्कृष्ट देवभवसन्धी गति से चलकर यावत् जहा अमरकका नगरी और जहा पद्मनाभ राजा का भवन था वहा आया वा आकर के उसने पद्मनाम के भवन में अशोकवाटिका में द्रोपदा देवी को रखदिया। रग्बकर के फिर उसने उसे गाढ निद्रा से रहित कर
(उवागच्छित्ता दोईए दीवीए ओसौरणिय दलयइ, दलित्ता दोवई दान गिहा, गिणिदत्ता ताए उकिस्ट्राए जाव जेणे अमरकका जेणेर पउमणामस्स भवणे-नेणेव उपआगच्छद्र उवागन्धित्ता पउमणाभास भवणसि असागा दोवइ देवी ठवेइ ठावित्ता ओसोपणि अपहरइ, अपहरित्ता जेणेप पउमणास उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एष वयासी-एसण देवाणप्पिया मए हत्यिणाउरामा दोरई इह हयमाणीया, तब असोगवणियाए चिइ, अतोपुर तुम जाणिासात पई जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए)
ત્યા આવીને તે દ્રૌપદીને ગાઢ નિદ્રામાં સૂવાડી દીધી, સુવાડીને તે તે દ્રૌપદીને ત્યાથી ઉઠાવી અને ઉડાવીને તે ઉત્કૃષ્ટ દેવભવ સ બધા ચાલીને યાવત્ જ્યાં અમર કા નગરી અને જવા પવનાભ રાજાનું કામ છે. ત્યા આવ્યા ત્યાં આવીને તેણે પદ્દાનાભના ભવનમાં અશોકવાટિકામાં દ્રપદ
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