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शक्यत इत्यर्थः ।
प्रातधमकथासूत्रे पयपराणेउरा नपादासन पुरावरणस्थापित मशस्त नूपुरा यात्- चेडियाचा वापर गन्दिपरिक्खिता चेटिकाचनालमहतरक रन्देन - अनेकदा सीमदत्त रममूहेन परिक्षिप्ता-परिटता, अन्तःपुरात् मतिनिष्क्रामति - निःसरति, मतिनिष्क्रम्य यौनः मदेशस्था ' उपकाणसाला ' उप स्थानशाला = आस्थानमण्डप -सभामण्डइत्यर्थः, यंत्रेन चातुष्टोऽश्वरथस्तोत्रोपाग च्छति, उपागत्य 'किड्डानियाए ' कीड़िकया -क्रीडनपाच्या कीदृइया की डिकया इत्याह ' लेहियाए ' इति लेखिका = राजकुलपशनामादिपरिचारिका स के उसके सौन्दर्य का हम क्या वर्णन करें। पर वाणी द्वारा कहने के योग्य नहीं है अर्थात् वाणी से उसका वर्णन नहीं हो सकता है । ( वर पापणेरा जान चेडियाचा वालमयरग विदपरिक्खित्ता अते
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ओ पडिणि+सम ) चरणों में स्थापित किये गये है- पहिराये गये हैं- प्रशस्तनपुर जिसको ऐसी वर द्रौपदी यावत अनेक समझदार दासियों के महामहिम समूह से परिक्षिप्त होकर अतपुर से बाहिर नकली | (पाि जेणेव बाहिरिया उवहाणसाला जेणेव चाउटे आसरहे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छिता किडावियाए लेरि पाए सद्धि चाउरघट आसरह दुरूह ) बाहिर निकलकर वह जहाँ बाहिर में सभामंडप और उसमें भी जहा चारघटो वाला अश्वरथ था वहा आई । वहा आकर वह अपनी क्रीडनधात्री के कि जो लेखिका राजकुल, घश नाम आदि की परिचायिका यी साथ उस चारघवाले
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આપણે કેવી રીતે કરી શકીયે વાણી વડે તેનુ વર્ણન અશક્ય છે એને કે વાણીમા એટલી રાક્તિ નથી કે તેના સૌદર્યાંનુ સંચાટ વર્ણન કરી શકે (बरपायपत्तणेउरा जाव चेडिया चक्क वालम यह र गर्विदपरिक्खित्ता अते उराओ पडिणिक्खमड़ )
પગેમા જેણે સુદર નૂપુર પહેર્યા છે એવી તે દ્રૌપદી ઘણી ચતુર દાસી આથી વીંટળાઇને રણવાસથી બહાર નીકળી
( पडिनिक्खमित्ता जेणेन बाहिरिया उवहाणमाला जेणेत्र चाउटे आसर हे तेव उत्रागच्छ, उनागच्छिता किड्डावियाए लेहियाए सर्द्वि चाउम्घट आसरह दुरुइइ)
બહુાર નીકળીને તે જ્યા બહારના સભા-મ ડપમા ચાર ઘટવાળા અશ્વ શ્ય હતા ત્યા આવી ત્યા આવીને તે પાતાથી કીડન ધાત્રી-કે જે લેખિકા રાજકુલ, વા નામ વગેરેની પરિચારિકા હતી તેની સાથે તે ચાર ઘટવાળા અક્ષર ઉપર સવાર થઈ શ