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________________ ૨ शाताधर्म कथा मामाण्यादन्यस्यापि श्रापवादेस्तावदन वदिति मन्तव्य, चरितानुरादरूपत्वादस्य, इति । न चेत्यस्य मन्तव्यमित्यनान्ययः । द्रौपदी मणिपातमात्र दण्डात्मणा ममात्ररूप चैत्यन्दन-प्रतिमानन्दन कृतवतीत्यर्थ उपयोपिक एतत्सून माणमाश्रित्य तावदेव तत् मणिपातदण्डकमात्र नन्दन कुर्यादिति न मन्तव्यम्, तत्र कारणमाह 'चरितानुपादस्य ' इति । अस्य तत्सूत्रस्य चरितानु पादरूपत्वात् ज्ञातप्रदर्शकतया यथाटत्तस्य वत्तन्वरितस्यानुरूपतात्, न तु भगवता ' जय चरे जय चिह्न ' इत्यादिवत् कचिदाना मदत्ता | तम्मादस्य विधिनिषेधस्य न समतीत्याह-' न च चरितानुवादवच बात भी सिद्ध हो जाती है कि अन्य श्रावकों को भी इसी प्रकार चन्दन नमन करना चाहिये-सो इस प्रकार का करन ठीक नही है । कारण कि यह चरितानुवाद रूप है । भावार्थ- कोई अन्य नायक जन ऐसा समझकर कि सूत्र मे जन द्रौपदी ने दण्डकी तरह होकर चैत्यवदन किया है तो इमी सूत्रकी प्रमाणता लेकर हमें भी इसी तरह से प्रणाम करना चाहिये सो इस प्रकार की मान्यता उनकी ठीक नही है कारण कि यह चरित का ही अनुवादक है । चरितका अनुवादक वाक्य विधेयरूप से मान्य नहीं होता है । यह सूत्र चरित का अनुवादक रूप है - इसका यह भाव है कि यह वाक्य ज्ञात अर्थ का प्रदर्शक होने से पहिले जो जो बातें २ जिस २ रूपमें हो चुकी हैं उन सब का अनुवादक रूप है । " जय चरे जय चिट्ठे " इत्यदि सूत्र की तरह यह विधि वाक्य नही है । इसीलिये भगवान ने प्रतिमा के पूजन और वदना, नमन करने आदि की आज्ञा कही भी सूत्र में नही दी પ્રમાણે જ વદન નમન કરવા જોઈએ તેા આ જાતનુ કથન ચેાગ્ય નથી, કેમકે આ ચિતાનુવાદ રૂપ છે ભાષા—ગમે તે શ્રાવક આમ સમજીને કે સૂત્રમા~ ૨ દ્રૌપદીએ દડાકારે થઇ? ચૈત્ય વદન કર્યું કે તે! આ સત્રને જ પ્રમાણુ સ્વરૂપ માનીને અમારે પણ આ પ્રમાણે જ પ્રણામ કરવા જોઇએ તે તેમની આ વાત પણ ઠીક કહી શકાય તેમ નથી, કેમકે આ ચરિતના જ અનુવાદક છે. રિતનુ અનુવાદક વાકય વિધેય રૂપમા માન્ય હાતુ નથી આ સૂત્ર તિને અનુ વાદક રૂપ છે. આના ભાવ એ છે કે આ વાય. સાત મના પ્રદર્શક હાવાથી જે જે વાતે જે રૂપમા થઈ ચૂકી છે તે ખધાનુ અનુવાદક રૂપ છે| जय चरे जय चिद्रे " इत्याहि सुननी प्रेममा विधिवार ካ jal
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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