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बाताधर्मकथासूत्रे
ब्राह्मीशस्य भाषार्थकत्वात्, उरव चामरकोशे -'नामी तु भारती भाषा गीग् पाणी सरस्वती' इति । यद्वा-अकारा लिपि श्रीमन्नाभेय जिनेन ब्राह्मीना मिका स्वता पदर्शिता तस्मात् सा लिपनीत्युच्यते । त्रिविज्ञानस्य श्रुतज्ञा पयोगिता पारूप भावलिपिमा श्री स्वा मी माह- 'नमो भए लिपीए' इति । श्रुतज्ञान प्रति निविज्ञान कारण, यतो लिपिज्ञानेन वत्स के तितशब्दस्मरण, तवस्तदर्थज्ञान जायते । तस्माद् भगवदुक्ता स्यमतिपोधनाय दोषपदावरूप लिपिवद्ध कामतोषिका
लिबीए " इसका अर्थ इस प्रकार से सगन बैठना है-असर जादि वर्णा त्मक भाषा के सकेतरूप लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि है-त्राह्मी शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है अमर कोप में भी यही बात कही है-"नामी तु भारती भाषा गीर्वागू वाणी सरस्वती " । अथवा श्री आदिनाथ प्रभु ने अपनी ब्राह्मी नाम की पुत्री को १८ प्रकार की लिपि कही थी इसलिये भी उस लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि इस प्रकार से पड़ गया है। श्रुतज्ञान में उपयोगी होने से हम लिपि के ज्ञान को भावश्रुन का कारण माना है । इसलिये लिपि ज्ञानरूप भाव लिपि को बदन करते हुए श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं " नमो भी लिवीए " । श्रुतज्ञान के प्रतिलिपि ज्ञान कारण है क्यों कि लिपि के ज्ञान से अकारादि वर्णा हम लिपि रूप से सकेतित उस उस शब्द का स्मरण होता है और उससे उसके अर्थ का ज्ञान होता है । अतः भगवान द्वारा प्रतिपादित अर्थ को समझाने के लिये उस अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्दों के
આ પ્રમાણે સુસ ગત એસી શકે છે કે-અકાર વગેરે વર્ણાત્મક ભાષાના સ કેત રૂપ લિપિનુ નામ બ્રહ્મી લિપિ છે. બ્રાહ્મી શબ્દ , 'लापा આ અર્થમા પ્રયુકત थयो छे अमरमेशमा पशु सेवात डेवामा भाची " ब्रह्मी तु भारती भाषा गोगवाणी सरस्वती " अथषा तो श्री महिनाथ अलुखे पोतानी બ્રાહ્મી નામની પુત્રીને અઢાર પ્રકારની લિપિ મતાવી હતી એટલા માટે પશુ આ લિપિનુ નામ બ્રાહ્મી લિપિ પડી ગયુ છે શ્રુતજ્ઞાનમા ઉપયેગી હાવાથી
આ લિપિના જ્ઞાનને ભાવદ્યુતનુ કારણ માનવામા આવ્યુ છે એથી લિપિજ્ઞાન ३५ लावसिपिने वहन उरता श्रीसुधर्मास्वामी हे छेडे "नमो व भीए लिवीए” શ્રનજ્ઞાનના પ્રતિ લિપિજ્ઞાન કારણ છે કેમકે લિપિના જ્ઞાનથી અકર વગેરે વર્ણાત્મક લિપિ રૂપથી સ કેતિત તે શનુ સ્મરણ થાય છે અને તેનાથી તેના અર્થાંનુ જ્ઞાન થાય છે એટલા માટે ભગવાન્દ્વારા પ્રતિપાદિત અને સમજાવવા