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तामकथा बाहयचेष्टाविशेषाः, ते समिश्र-सयुक्त, मेमादिगाना नि श्रेयसाभ्युदयधर्मम् लत्वेन शास्त्रान्तरेषु प्रतिपादनात् । तत्परिधमनुष्ठान धर्म उति कीत्यते शब्धते सुधीभिरिति ।
नन्वेर रचनाऽनुष्ठान धर्म इति माप्त, तया 7 मीविभक्त्यसङ्गानुष्ठानेष्व व्याप्तिरिति चेन्न-रह तु वचनादित्यत्र पंगत् चिरित्या प्रयोज्यत्वार्थिका धर्म का अस्तित्व जाना जाता है अन्य सिद्धान्तकारों ने भी इ. नि. श्रेयस और स्वर्ग के कारणभूत धर्म का मूल का है । अतः जो आगम से अविरुद्ध है, काल ओदि की आराधना के अनुसार जो आराधित होता है और जो मैत्री आदि चार भावनाओ से गर्मित है ऐसा अनुष्ठान ही धर्म है । ऐसे ही धर्म की जारापना करने का गण धर आदि का आदेश है।
भावार्थ-तीर्थकर कथित आगम के अनुमार होने वाले अनुष्ठान का नाम धर्म है । इसका फलितार्थ यही है कि जिस अनुष्ठान मे तीर्थंकर प्रभु मारा कथित आगम से विरोध नहीं आना है वही धर्म है । तथा च-प्रीति भक्ति और असग रूप अनुष्ठानों में इस लक्षण की अप्राप्ति नही होती है क्योंकि वहा पर भी इस लक्षण का सद्भाव पाया जाता है" वाचनानुष्ठान धर्मः" इस प्रकार के कधन मे "वेदात प्रवृत्तिः" की तरह प्रयोज्य अर्थ में पचमी विभक्ति हई है अत जिस प्रवृत्ति का प्रयोज्य वचन है वह धर्म है। (वचनानुष्ठान धर्म ) यहा से लेकर (प्रीति भक्ति असगानुष्ठान इत्यादि तक) लिखने की आवश्यकता જાણવામાં આવે છે બીજા સિદ્ધાતકારોએ પણ આ બાને નિ શ્રેયસ અને સ્વર્ગના કારણભૂત ધર્મનું મૂળ બતાવ્યુ છે એથી જે આગમથી અવિરુદ્ધ છે કાળ વગરની આરાધના મુજબ જે આરાધિત હોય છે અને જે મૈત્રી વગેરે ચાર ભાવનાઓથી યુકન છે એવું અનુષ્ઠાન જ ધર્મ છે એવા જ ધર્મની આરાધના કરવા માટે ગણધર વગેરેનો આદેશ છે
ભાવાર્થ –તીર્થંકર કથિત આગમ મુજબ આચરાયેલા અનુષ્ઠાનનું નામ ધર્મ છે એને અર્થ આ પ્રમાણે ફવિત થયે છે કે જે અનુષ્ઠાનમા તીર્થંકર પ્રભુ વડે કથિત આગમથી વિરોધ જણાતું નથી તે જ ધર્મ છે તેમજ પ્રીતિ, ભક્તિ અને અસ ગ રૂપ અનુષ્ઠાનમાં આ લક્ષણની અપ્રાપ્તિ પણ હોતી નથી भ या प म सक्षएन। समाप भणे छ “ वाचनानुष्ठान धर्म " भा जतना ४थनमा " वेदात प्रवृत्ति । ना २ प्रयोय. अर्थमा ५यभी विla थ छ मेरा भाटे २ प्रवृत्तिनु प्रयाय क्या छ त धर्म छ (वचना नुष्ठान धर्म ) माथी भान प्रीति भक्ति असगानुष्ठान पोरे ' -भवानी