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________________ ममगारधर्मामृतषिणी टी० अ० १४ ते तलिपुत्रप्रधानचरितवर्णनम् गतवान् । 'तरण' तन खलु तस्याः पद्मावत्याः 'अगपडियारियाओ' रङ्गपतिचारिका' दाम्य' पद्मावतीदेवी गिनिधातमापन्ना पाणरहिवां दारिका च पश्यन्ति, दृष्ट्वा यौव कनकरयो राजा, तोच उपागन्छति, उपागत्य तिलपरिगृहीत दर्शनख शिर आवर्त मस्त केऽन्नलिं कृत्वा 'ए' = वक्ष्यमाणरीत्या अवदत्-हे स्वामिन् ! पद्मावतीदेवी 'मल्लिया 'मृता दारिका 'पयाया' प्रजाता-प्रजनितवती । 'तएग' इति, तन सलु दामीमुग्वान्मृतपालिकाज मयगानन्तर फनफरयो राजा तस्या 'मइल्लियाए ' मृतायाः दारिफाग ' नीहरण' निर्हरण' निष्काशन 'फरेइ' कगेति, कृत्वा बहूनि लौकिकानि मृतकृत्यानि करोति, कृत्वा 'कालेण' पास रख दिया। और रखकर फिर वह वहा से चल दिया चलकर अपने घर आ गया। (तण तीसे परमावई अगपरियारियाओ पउमावड देवि विणिहायमावन्न दारिय पासति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्तो करयलपरिग्गहिय दसनह सिरसावत्त मत्यरा अजलिं कटु एव वयासी एव खलु सामी पउमावई देवी महल्लिय दारिय पयाया) इसके बाद पद्मावती देवी की अगपरिचारिकाओंने पद्मावती देवी को और मरी हुई उस कन्या को देग्वा देग्व कर वे सब जहा कनक रथ राजा थे वहीं गई-वहा जाकर उन्होंने दो नों हाथों की अजलि बना कर और उसे मस्तक पर घुमाकर-अर्थात् नमस्कार कर इस प्रकार का हे स्वामिन ! पद्मावती देवी ने मृत कन्या को जन्म दिया है । (तपण कणगरहे राया तीसे मइलियाए दारियाए नीहरण करेड,यणि लोहयाइ मयकिच्चाइ करेड करित्ता कालेण विगयसोए जाए) इस प्रकार उन के मुग्व से सुनकर कनक रथ राजाने उस मृत (तएण तीसे पउमालईए अंगपरियारियाओ पउमापड देवि विणिहायमावन्न दारिय पासंति पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेर उवागच्छति, उत्रागनिउत्ता करयलपरिग्गहिय दसनह सिरसावत्त मत्यए अंजलि कट्टु एव वयासी-एर खलु सामी पउमावईदेवी मडल्लिय दारिय पयाया) ત્યારબાદ પદ્માવતી દેવીની અગ-પરિચારિકાઓએ પદ્માવતી દેવી તેમજ તે મરેલી કન્યાને જોઈ જોઈને તેઓ બધી જ્યા કનકરથ રાજા હતા ત્યાં ગઈ અને ત્યાં જઈને તેણે બંને હાથેથી આ જલિ બનાવીને અને તેને મસ્તક ઉપર ફેરવીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે હે સ્વામી! દેવી પદ્માવતીએ મરેલી કન્યાને જન્મ આપે છે (तएण रणगरहे राया तीसे मदल्लियाए दारियाए नीहरण करेइ, नहणि रोइयाइ मयकिच्चाइ करेइ करित्ता कालेणं गियसोए जाए)
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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