________________
५६७
अनगारधर्मामृतपिणी टोका १० १६ द्रौपदीचर्चा
,
ना
तल्लेसे तरज्य मिए तनिव्वज्रमाणे तदद्रोपते तदपियकरणे तभावगा भाfor sorte कत्थ मण रेमाणे उभभोपाल आवसाय करेड, से व लोगु तरिय भाव से त नोआगमतो भावास्य से त भावावसय ॥ छाया-यत् श्रमणो न श्रमणी वा श्राविका तचित्तस्तन्मनस्कस्तल्लेश्यस्तदप्रासितस्तत्तीना पवसायस्तदर्योपयुक्तस्तदर्षित करणस्तद्भावनाभावित अन्य कुन चिन्मनोऽकुर्वन् उमरकाल यत् आवश्यक सामायिकादि करोति तेषां तल्लोकोत्तरिक भागास्यम् । तेषां तद् नोआगमतो भावाश्यकम् तदेतद्भावावश्यकम् ।
★
अनावश्यकरणी लावावश्यक व तरयोगादिपरिगामन्य सहापद्मावत्वम् रजो मार्जि माव्यापारयथारात्नि कान्दनतरणानन्तर सविधि है - जण इमे समणे वा समगी वा सापओ वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्ले से तदज्जयमिए ततिव्यवसाणे तो उत्ते तदपि अकरणे तभारणामाविए अण्णत्थ कल्वइ मण अकरमाणे उभओकाल आवम्मय करेति, से त लोगुत्तरिय भावावस्मय से त नो आगमतो भावावस्मय से त भावावस्तय (अनुयोगद्वार )
श्रमण अथवा श्रमणी श्रापक अथवा श्राविका जो सामायिक आदि आवश्यक कियाओं को तच्चित होकर ( उनमें ही चित्त लगाकर ) तनन होकर उनमे ही अन्त करणको एकाग्ररत्यादि सूत्र कति विधिके अनुमार दोनों बालों मे करतेहें वह उनका कार्य नो आगम की अपेक्षा से लोकोत्तरिक भाव आवश्यक है । ये सामायिक आदि क्रियाएँ अवश्य करने योग्य होने से आवश्यक है । कर्त्ता का उनके अर्थ में उपयोग रूप एव श्रद्रा आदि रूप परिणाम का मद्भान होने से उनमें तदज्झबसिए तत्तित्र्वज्झनसाणे तदट्ठोपउत्ते तदपि करणे उभारणाभावि जगत्थ कत्थ मण करेमाणे उभोकाल आसय करेंति मे त ठोगुत्तरिय भावावस्सय, से त नो आगमतो भावावस्य मे त भावा (अनुयोगद्वार ) ।
શ્રમણ અથવા શ્રમણી શ્રાવક અથવા ગાવિા જે સામાયિક નોક આવ ત્યક ક્રિયાને તશ્ચિત્ત થઇને ( તેમનામા મન પાવીને ) તબ્બીન 4 મે તેમનામા જ મન લગાવીને વગેરે સૂત્રમા થિતનિધિ જમ અને વતે કર છે તેમનુ તે કાય ના આગમની અપેક્ષાએ લેટેનરિક વ છે. આ સામાયિક વગેરે ક્રિયાએ અવય વા યે વાત બ કોંના તેમના અર્થમા ઉપયેારૂપ પાિનને વવ વી ધ भावता पशु छे स्नेहश्या भूमि वगेरेनु प्रभा
2214