________________
तापण्या द्वीन्द्रियादिपञ्चेन्द्रियपर्यताबसायेत्यर्थः, द्रियाटिमाणानां यथासम्भधारणात् तेषु माणिस्वमस्तीति भावः । तथा-सरें भूया' भूताः भान्ति भविष्यन्त्यभूवन्निति भूता:-चतुर्दशभूतग्रामरूपाः, तथा-सर्ये जी जीवन्ति जीवि प्यत्यजीविपु रिति जीवाः-नारकतिर्यमनुष्यदेवाः, तया-सर्व "सत्ता" सत्ताक प्रमाण द्वारा नाधित नही हो सकने से पूर्वापर विरोध रहित हरी कहा है। "प्राण' शब्द से सूत्रकार ने इस और स्थावर प्रणियो का ग्रहण किया है। क्यो कि १० द्रव्य प्राणो में से इनको अपने २ योग्य प्राणो का सद्भाव पाया जाता है। अत' इनके सदाय से ही ये प्राणी कहे जाते हैं। " भवन्ति, भविष्यन्ति, अभूवन् "यह भूत शब्द की व्युत्पत्ति है । इसका भाव यही है कि जो वर्तमान में सत्ता विशिष्ट हैं, आगामी काल में सत्ता विशिष्ट रहेंगे एव भूतकाल में भी जो सत्ता विशिष्ट थे । इस व्युत्पत्ति से सूत्रकार ने यह प्रदर्शित किया है कि प्रत्येक जीवादिक पदार्य किसी भी काल में उत्पाद
और व्यय धर्म विशिष्ट होते हुए भी अपनी सत्ता से रहित नहीं होते हैं। क्यों कि द्रव्य का " उत्पादव्ययधौव्य सत् " उत्पाद, व्यय
और ध्रौव्य ये स्वभाव है । इससे यह यात निश्चित कोटि में आता है कि किसी भी नवीन पदार्य का उत्पाद नहीं होता है और न सत् पदार्थ का विनाश ही होता है। "सतो विनाश. असतश्चोत्पादो न" " जीवन्ति, जीविष्यन्ति, अजीविपु" यह जीव शब्द की व्युत्पत्ति है । કઈ કહ્યું છે તે ભૂત ભવિષત અને વર્તમાનકાળમાથી કોઈ પણ કાળમાં ગમે તે પ્રમાણ દ્વારા બાધિત નહિ હોવા બદલ પૂર્વાપર વિરોધ રહિત જ કહ્યું છે, "प्राण" श४ १3 सूत्ररे उस भने स्था१२ प्राणीभानु अहए युं छे કેમકે ૧૦ દ્રવ્ય પ્રાણેમાથી એમનામા પોતપોતાને ગ્ય પ્રાણોને સદ્દભાવ भने छ मेथी मना समाथी तसा प्राणी उपाय छ " भवन्ति, भविष्यन्ति, अभूवन " मा भूत शहनी व्युत्पत्ति छे मन मयमा प्रमाणे છે કે વર્તમાનકાળમાં જેઓ સત્તા વિશિષ્ટ છે, તેઓ ભવિષ્યકાળમાં સત્તા વિશિષ્ટ રહેશે અને ભૂતકાળમાં પણ જેઓ સત્તા વિશિષ્ટ હતા આ વ્યુત્પત્તિ વડે સૂત્રકારે એ બતાવ્યું છે કે દરેકે દરેક જીવ વગેરે પદાર્થ કોઈ પણ કાળમાં ઉત્પાદ અને વ્યયધર્મ વિશિષ્ટ હોવા છતાએ પિતાની સત્તાથી રહિત હોતા नयी भो दयनी " उत्पादव्ययध्रौव्य सतू " Gult, व्यय मन धोव्य સ્વભાવ છે એથી એ વાત ચોક્કસ રીતે સ્પષ્ટ થાય છે કે કોઈ પણ નવીન પદાર્થને ઉત્પાદ થતું નથી અને સત્ પદાર્થને વિનાશ પણ તે નથી "सतो विनाश असतधोत्पादो न" " जीवन्ति, जीविष्यन्ति,
मा.