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मनगारधामृतविणी टी० अ० १६ पदीया
धर्मस्य लक्षण हि-जिनाज्ञाम योज्यप्रवृत्तियत्वम् , " आणाए मामग धम्म" इति भगवद्वचनात् , किंच-अगारानगारभेदेन धर्मस्य द्वैविध्यमभिधाय-मगवता-" अणगारधम्मो ताव " इत्यादिना सर्वप्राणातिपातविरमणादि-रात्रिभो जनान्तान् अनगारधर्मानुपदिश्य तदनन्तरमिद कथितम्
'अयमाउसो ! अणगारसामइए धम्मे पण्णत्ते एयरस धम्मस्स सिक्खाए उव हिए निग्गये वा निग्गथी वा विहरमाणे आणा ए आराहए भवइ' (ओपपातिसूत्रम्)
अयमायुप्मन् । अनगारसामायिका अनगारसिद्धान्तविपयः, धर्मः प्रज्ञप्त । एतस्य धर्मस्य ' शिक्षायामुपस्थितः 'आराधकः, निग्रंथो वा निमेथी वा विहरऔर वहा से गिर पड़कर अन्त में मर जाते हैं।
जिनेन्द्र की आज्ञा में प्रवृति करना यही धर्म का लक्षण है। भगचान का भी आचाराङ्गमत्र अ.६ उ २ सू- ८ में यही कथन है " ओणाए मामग धम्मं" इति । प्रभु ने जिस समय धर्म का उपदेश दिया उस समय उन्होने इस धर्मके दो भेद कहे हैं इनमें एक१ सागारी गृहस्थका धर्म और दूसरा अनगार-मुनिका धर्म । " अनगार यम्मो ताव " इत्यादि सूत्र से समस्त जीवों की विराधना आदि से विरक्त होना यहा से लगाकर गत्रिभोजन का सर्वथा परिहार करना यहा तक जो कुछ कहा है वह सब अनगार धर्म को लेकर कहा गया है उसके बाद उन्होंने औपपातिक सूत्र में यह कहा है कि " अयमाउसो अणगारसाम3ए धम्मे पण्णत्त, एयम्स धम्मस्स सिक्खाप, उचहिए निग्गथे वा निग्गथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भव" हे आयुग्मन् ! यह अनगारसामायिक-मुनियो का सिद्धान्त विषयक ૬ ખેથી સતત થઈને અને ત્યાથી પડી જઈને, ભ્રષ્ટ થઈને અને મૃત્યુને ભેટે છે
જીનેન્દ્રની આજ્ઞા પ્રમાણે અનુસરવું એ જ ધર્મનું લક્ષણ છે આચારાગ सत्र २५-६, 6-२, सू-८ मा ५ लगवाने २मा प्रमाणे उखु छ “ आणाए मामग धम्म इति" प्रभु क्यारे धर्म विधे पदेश माया त्यारे तेभरे આ ધર્મના બે ભેદ બતાવ્યા છે ૧ સાગાર ગૃહસ્થને ધર્મ અને ૨ અનગાર भुनिन। म " अनगारधम्मो ताव " वगेरे सूत्रथा समस्त ७वानी वि। ધના વગેરેથી વિરક્ત થવું અહીંથી માડી રાત્રિભોજનને સપૂર્ણપણે ત્યાગ કર અહીં સુધી જે કઈ કહ્યું છે તે બધુ અનુગાર ધર્મને ઉદ્દેશીને કહેવામાં આવ્યું છે ત્યારપછી ઔપપાતિક સૂત્રમાં તેઓશ્રીએ આ પ્રમાણે કહ્યું છે કે(अयमाउसो अणगारमामइए धम्मे पण्णत्ते, एयरस धम्मस्स सिक्साए, उदिए निगथे पा निरगथी या विदरमापो आणाप आराहप भव) हे मायुभन्।