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________________ २७३ मगारधामृतषिणी टी० १० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् नगरेसु अणेगाइ रायसहस्साड जाव समोसरह । तएण से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर जाव समोसरह। तएण ताई अणेगाई रायसहस्साइ तस्स दूयरस अतिए एयमट्ट सोञ्चा निसम्म हट० तं दृय सकारेंति सकारिता सम्माणति सम्माणित्ता पडिविसजिति, तएणं ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तय२ व्हाया सन्नद्रहस्थिखंधवरगया हयगयरह० महया भडचडगररहपहकर० सएहितोर नगरेहितो अभिनिग्गच्छति२ जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० १९ ॥ टीका-'तएण से' इत्यादि । तत खलु स द्रुपदो राजा द्वितीय दूत शब्दयति, शन्दयित्वा एवमयादीत्-गर मलु व पाण्डु राज मपुत्रर पुरै महिन 'तण्ण से दुवा राया' उत्यादि । टीकार्य-(तएण) उस के बाद (से दुव राया ) उस द्रुपद राजाने (दोच्च दृय सद्दावेइ) अपने दूनरे दूनको बुलायो (महावित्ता व वयामी) बुलाकर उनसे ऐसा करा-गच्छण तुम देवाणुप्पिया हत्यिणाउर नयर तत्थ ण तुम पडराय मपुत्तय जुहिडिल्ल भीमसेण अज्जुण नउल महदेव दुजोहण भाइमयममग्ग गगेय विदुर दोण जयदह मउणीकिन आसत्थाम करयल जाव कटु नहेव समोसरह) बुलाकर उससे ऐसा कहा हे देवानुप्रिय । तुम हस्तिनापुर नगर जाओ-वहा जाकर तुम पुत्र 'तएण से दुबा राया' इत्याति शा-(तएण) त्यापी (से दुवए राया) ते ५६ RANA (सोच दूय सद्दावेइ ) याताना मी इतने मदाव्य (सोवित्ता एस वयासी) all पान तेने मा प्रभारी 3 ( गच्छह ण तुम देवाणुप्पिया हत्यिणाउर नयर, तत्य ण तुम पडुराय सपुत्तय जुहिट्टिाल भीमसण अजुर्ण नटल सहदेव दुज्जो हण भाइसयसमग्ग गगेय विदुर दोण जयदह सउणी किन आसत्थाम करयल नार कट्टु तहेव समोसरह ) ३ आनुप्रिय ! तमे तिनाथु नगरमा
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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