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वाताधर्मकथाह
मूलम् -तरण से दुबए राया दोघं दूयं सहाने साविता एव वयासी- गच्छ णंतुमं देशणुप्पिया ! हरिथणार नयरं तरण तुमं पंडुरायं सपुत्तय जुहिटिल्लं भीमण अज्जुण नउल महदेव दुज्जोहणं भाइसयसमग्ग गंगेव विदुर टो जयद्दह सउणी किवं आमत्थाम क्रयल जाव कटु तहेव समीसरह, तएण से दूर एव व्यासी जहा वासुदेवे नवर भेरी नत्थि जाव जेणेव कपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए२ । एएणेव कमेणं तच्चं दूय चंपानयरिं तत्थ णं तुमं कण्ह अगराय सेल नदिराय करयल तहेव जाव समासरह । चउत्थ दूय सुतिमइ नयरिं तत्थ ण तुमं सिसुपाल दमघोससुय पचभाइसयस परिवुड करयल तहेव जाव समोसरह | पंचमग दूय हत्थसनियर तत्थ पण तुमं दमदत राय करयल तहेच जाव समोसरह । छट्ट दूयं महुर नयरिं तत्थ ण तुम घरं राय करयल जाव समोसरह | सत्तम दूयं रायगिहं नयंर तत्थ ण तुम सहदेव जरासिधुसुय करयल जाब समोसरह । अट्टम दूय कोडिण्ण नयर तत्थ ण तुम रुप्पि भेसगसुय करयल तहेव जाव समो सरह | नवम दूय विराडनयर तत्थ ण तुम कीयग भाउसय समग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूय अवसेसेसु य गामागार होते हुए निकले । निकलकर वे सौराष्ट्र देश के बीचो बीच से चलकर आये जहाँ देश की सीमा थी । उस सीमा पर आकर के फिर वे पहा पाचाल जनपद के मध्य से होते हुए जश कापिल्य पुर नगर था उस और चल दिये ।'
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થઈને
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ચ્ચે થઈને પોતાના દેશની હદ સુધી પહે થઈ ને જતા કાપિત્થપુર નગર હતુ તે