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पारधर्मामुतवर्षिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचरिरावर्णनम् जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सामुदाइय भेरि महया महया सदेणं तालेइ तणं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए लमाणीए समुदविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामुक्खाओ छप्पणं वलवगसाहसीओ पहाया विभूसिया जहा विभव इसिकारसमुदणं अपेगइया जाव पायविहारचारेण जेणेव कप हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हे वासुदेवे जपणं विजएणं वद्धावेति, तएर्ण से कहे वासुदेवे को डुविपुरिसे सदावेइ सावित्ता एव वयासी- खिप्पामेव भो । देवाणुपिया | अभिसेक्क हत्थिरयण पढिकप्पेह हयगय जाव पञ्चपिणंति, तरणंसे कण्हे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे जात्र अंजणगिरिकूडसन्निभ गयवइ नरवई दुरूढे, तरणं से कहे वासुदेवे समुद्दविजयपामुखेहि दसहि दसारेहि जाव अणंगसेणापामुक्खेहि अणेगाहि गणियासाहस्सीहि सद्धि सपरिवुडे सव्विड्डीए जाव रखेण वारवइनयरि मज्झं मज्झेण निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स मज्झं मज्झेण जेणेव देसप्पते तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पंचाल जणवयस्स मज्झ मज्झेण जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० १८ ॥
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