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________________ storeisuret उवद्वाणसाला तेणेन उपागच्छति चाउघंट आसरहं ठो ठवित्ता रहाओ पच्चोड पचीरुहित्ता नस्सागु रापरिक्खित्ते पायविहारचारेण जेणा कण्हे वासुदेवे तेणेत्र उवागच्छइ उवागन्छित्ता कण्हें वासुदेवे समुदविजयपामुक्खे दस दसारे जाव बलवगसाहसीओ करयल तं चैव जान समोसरह । तएण से कहे वासुदेवे तस्त दूयस्स अतिए एयम सोच्चा निसम्म हट जाव हियएतं दूय सको इ सम्माइ सम्माणित्ता पडिविसज्जे ॥ सू० १७ ॥ २६० टीका- 'तएण से ' इत्यादि । तदनन्तर से पदो राजा दूत शब्द यति, शब्दविला एवमादीन् देवानुमिय | भारती द्वारकां नगरीम्, तत्र खलु त्य कृष्ण देन समुद्रविजयममा दश दशार्धन, वलदेव ममुखान् पञ्च महावीरान, उग्रसेनममुखान् पोडश राजसहखाणि मनुन्नममुखाः अर्ध चतुर्थी. कुमार कोटीप्रमुखान् सार्वत्रिकोटिराजकुमारान् साम्बप्रमुखाः पष्टिदुर्दान्तसाहस्री = साम्नप्रमुखान् पष्टिसहस्रदुर्दान्तान, वीरसेनममुखान् एक विंशतिवीरपुरुषसाहस्री'वीरसेनममुग्वान एकविंशतिसहस्रवीरपुरुषान, महासेन - , 'से दुव' इत्यादि ॥ टीकार्थ- (तएण से हुए राया दूय सहावेह, सद्दावित्ता एव वयासी गच्छतुम देवाणुपिया ! बार वह नयरिं-तत्थण तुम कण्ह् चासुदेव सम्दविजय पामोक्खे दसदसारे पलदेव पामोक्खे पचमराबीरे उग्गसेन पामो क्खे सोलसरायसहस्से पज्जुण्णदामो+खाओ अद्धाओ कुमारकोडीओ सपपामोक्खाओ सहि दुद्दत साहस्सीओ वीरसेन पामोक्खाओ इक्कीसं " तएण से दुध ' इत्यादि -- टी अर्थ - (तएण से दुवए राया हूय सहावेइ सहावित्ता एव वयासी - गच्छ तुम देवाणुप्पिया ! वारवइ नयरिं - तत्थण तुम कण्ह वासुदेवसमुद्द विजयपामो खे सारे पोक्खे पच महावीरे उसेनपामोक्खे सोलसरायव्हरसे पज्जुण्ण पामुक्खाओ अधुट्टाओ कुमारकोडीओ सबपामोक्साओ सट्ठि दुद्दत वाहस्तीओ वीर सेr पामोक्खाओ फीस वीरपुरिससाहसीओ म बलव -
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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