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সথায় घउसापारीयात शरीरमकायम ना नाना , मीदग २ पुनः पुनः सौ पाह' पारतिमालगी, पाटी पापति सीम' गोप-शिर' धापति, गु धापति, 'मगारा' रामि धारति माह ' मा न्तराणि पानि, 'गोगा गुशान्तराणि गपपदेश भी, यम 'ठाण वा 'म्यानम्-उप रानार्थ स्थान मज पामय्या 'निसोरिया नषेधिकी स्त्री यायभूमि या 'चेपर' चायति-यगेनि, तत्रापि च मङपूमपोटकेन 'अभुक्खइत्ता' अभ्युत्य समिति, ना पगात् 'ठाण तासान या शय्या वा पेधिरी पाए' चेतपति-परोति । जाया यानि होत्या-अभिसण २ रत्ये गोड, पाप धोवेड, मीस धोवेह, मुह घोवेह, श्रणतराइ धोवेह, पात्रातराइ धोवर, गोमतराइ घोवेइ) वह सुकुमारिका आर्या शरीर सस्कार करने में भी तत्पर बन गई। पार २ यह शोध गोने लगी, पैर धोने लगी, शिर धोन लगी, मुग्य धोने लगी, स्तनातरों को धोने रगी, पक्षाओं को धोने लगी और गुख प्रदेश को धोने लगी। (जत्य ण ठाण या सन्न या निसीहिय वा चेएइ तत्व वियण पुयामेव उदएणअमुस्खइत्तो तओ पच्छा ठाण घा ३ चेएइ, तएण ताओ गोवालियाओ अन्नाओ सूमालिय अज एव पयासी) इसी तरह वह जहां अपना धैठने के लिये स्थान बनाती शग्या-पाथरती, स्वाध्याय स्थान करती, वहा भी वह पहिले से ही उसे जल से सींच देती-तब जाकर वहां पर अपना स्थान, शया एवं स्वाध्याय भूमि नियत करती। इस प्रकार की परिस्थिति देख कर गोपा होत्या-अभिक्खण २ हत्थे धोवेइ, पाए धावेह, सीस धोवेइ, मुह धोवेइ, थणराइ धोवेइ, फक्सतराइ धोवेइ गोज्झतराइ धोवेइ) सुकुमारि सार्या शरी२-२२४१ રના કામમાં પરોવાઈ ગઈ વારવાર હાથ ધોવા લાગી, પગ ધોવા લાગી, માથું છેવા લાગી, મુખ દેવા લાગી, તનેના વચ્ચેના સ્થાનને ધોવા લાગી,બગલેને धावा asil, मने शुस स्थानान घोपा हामी (जस्वर्ण ठाण वा सेज्जवा निसी हिय वा चेएह तत्यवि य णं पुव्यामेव उदएण अभुक्खइत्ता तो पच्छा ठाण षा ३ चेएइ तए ण ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालिय अज्ज एवं बयासी) આ પ્રમાણે જ તે જરા પિતાનુ બેસવાનું સ્થાન નકકી કરતી, કે પથારી પાથરતી અથવા તે સ્વાધ્યાય માટે બેસવાનું સ્થાન નક્કી કરતી ત્યા પહેલેથી જ તે સ્થાનને પાણું છાટતી હતી અને ત્યારપછી તે ત્યા પિતાનું સ્થાન-શપ્યા અને સ્વાધ્યાય સ્થાન નક્કી કરતી હતી આ જાતની પરિસ્થિતિ જોઈને ગે પાલિકા તે