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__ मागारधर्मामृनषिणी टी० अ०१६ सुफुमारिकाचरितनिरूपणम्
२३९ खलु सा मृयुमारिका गोपारियानामार्याणामेतमर्थ नो श्रद्दधाति 'नो पनियइ' नो मत्येति-नो विश्वसिति, 'नो रोएइ ' नो रोचते, एतमर्थम् अश्रदधाना अपत्यिन्ती, अरोचमाना सति स्मृमिभागम्य उद्यानग्य अदरसामन्ते पष्ठ-पाठेन यावत्-तप रमणा गर्याभिमुखी भूत्वा-आतापना कुर्वती विहरति ।। मृ० १३ ॥
मूलम्-तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्टी परिवसइ, नरवइ दिण्णवियारा अम्मापिइनिययनिप्पिवासा वेसविहा. रक्यनिकेया नाणाविहअविणयप्पहाणा अड्डा जाव अपरिभूया, तत्थ ण चपाए देवदत्ता नामंगणिया होत्था सुकुमाला जहा अंडणाए, तएणं तीसे ललियाए गोट्टीए अन्नया पच गोट्रिलगपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स कि जो भित्ति आदि से सब तरफ से परिक्षिप्त है भीतर ही अपने शरीर को शाटिका से अच्छी तरह सवृत्त करती हुई और भूमि पर दोनों चरणो को घरार स्थापित कर आतापना ( ताण सा समारिया गोवाल्यिाए एम नो सहरह, नो पत्तियइ नो गए। एयम अ० ३ मुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामते छठ छ8ण जाव विरइ ) इस गोपालिका आर्या कथन ऊपर उस सुकुमारिका आर्या को श्रद्धा नही जमी उस पर उसे विश्वास नहीं आया, वह उसे कचों नहीं । इस तरह वह उसे अश्रद्धा अप्रतीति और अरुचि का विपय यनाती हुई सुभूमिभाग नामक उद्यान के पास पष्ट पष्ठ की तपस्या करती हुई वह सूर्याभिमुख होकर आतापना करने लगी ।। सू० १३ ॥ પરિક્ષિત ઉપાશ્રયની અંદર જ પિતાના શરીરને શાટિકા-સાડીના મારી રીતે ઢાકીને અને ભૂમિ ઉપર બને ચરણને બરાબર પિત કરીને આપના
ये (तण्ण सा सूमाल्यिा गोवालियाए एयमट्ठ नो सहइ नो पत्तियह नो रोएइ, एयम? अ० ३ सुभूमिभागास उज्जाणम्स अदरसामते दु टुण जाव विहरइ) गोपा१ि७। मार्याना उन 6५२ सुमा२ मार्याने पद्धा 25 -8, તેના ઉપર તેને વિશ્વાસ થયો નહિ તે તેને ગમ્યુ પણ નહિ આ રીતે તે તે કથન પ્રત્યે અશ્રદ્ધા, અપ્રતીતિ અને અરુચિ ધરાવતી સભૂમિભાગ નામના ઉદ્યાનની પાસે પણ થઇની તપસ્યા કરતી સૂર્યાભિમુખી થઈને આતાપનાં કરવા લાગી છે સૂત્ર ૧૩ |