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२६८ नि.प. गिरिधागांगति ',
गारिष स्म.. तस्माद् नो खलु TETI FM-'परिमा' यति-प्रामाद गा रानिवभाद् पप्ठ पाठेन 'जार शिरिन पारद गित प्रामाद दि पद गाजीना स्थितिशीलगादिकारण मातीति भार: Ifमरते सलु मम्मारम् 'ना' अन्तः अभ्यन्तर ' उसयस' माश्यस्यगतः, शिम्भूतस्य 'नितिपरि विखतरस' पृविपरिसितम्य-मित्यादिना सभा समाहास्य, 'माडिपटियाए' सवाटिका प्रतिपदापा: मतिपदशाटिकायाः मर्ययाऽनुमाटिनगाया 'त्पर्य 'समतलपइयाए ' समतपदिकापा =भृमो समतलच्या स्थापित परणयुगलाया आयापित्तए' आतापयितुम् भातापना क मन्यते इति पूर्वण मम्पन्नः । ततः अज्जे ! समणीमा निग्गीआइरियासामयामो जार गुत्तपमचारि णीओ,नो सलु अम्म कम्पपरियागामस्त जारसविणवेसम्म वा छ४० जाय चिररित्तण) इस प्रकार सुकुमारिका साधी का कथन सुनकर गोपारिफा आर्या ने उस सुकुमारि का आर्या से हम प्रकार कहा है आयें ! हम लोग निन्य श्रमणिया है। ईर्मा आदि समितियो का पालन करती हैं । और नौ कोटि से नमचर्य की रक्षा करती है । इस लिये हम लोगो को ग्राम से यावत् सनिवेश से बाहिर रह कर षष्ठ षष्ठ की तपस्या करना यावत् सूर्याभिमुखी होकर आतापन योग धारण करना कल्पित नहीं है । कारण-ग्रामादि के पाहिरी प्रदेश में साध्विया का रहना शीलभा आदि का निमित्त पन जाता है। (कप्पड़ ण अम्ह अंतो उवस्सयस्स विपरिक्खित्तस्स सघाडिद्धियाए ण समतल पई याए आयावित्त ) हमें तो यही कल्पित है कि हम लोग उपाश्रय के एव क्यासी-अम्हेण अजे ! समणोओ निग्गधीओईरिया सामियाओ जाव गुत्त बभचारिणीओ, नो खलु अम्ह फापइ बहिया गामरस जाब सण्णिवेसरस वा छ? जाव विहरित्तए ) मारीत सुभारि साध्वान ४थन सामजीने गोपाtat આર્યાએ સુકુમારિકા આયીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે આર્યો ! આપણે નિગ્ન થ શ્રમણીએ છીએ ઈર્યા વગેરે સમિતિઓનું પાલન કરીએ છીએ, અને ન કેટિથી બ્રહ્મચર્યનું રક્ષણ કરીએ છીએ એથી આપણે ગામથી થાવતું સન્નિવેશથી બહાર રહીને પણ વણની તપસ્યા કરવી યાવતુ સૂર્યાભિમુખી થઈને આતપન ગ ધારણ કરવું કવિપત નથી કારણ કે-ગામ વગેરેથી બહારના પ્રદ शमा सानीमाये २७ शासन बिरेनु निमित्त 45 on छ (कप्पा ण अह अतो उवस्मयस्स विपरिस्खित्तस्स समाधिदियाए ण समतलपड्याए आया . विचए) मापनेता पित, आप भीत, १ वार