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________________ - - - - १६४ Rame टीका-'तत्य ण चपाप' म्यादिना गउ गम्पायां नगा मिनतो नाम सार्थ राह आयो गापद अपरिगत भागीन् । तस्य जिनदनस्य महा माया भासोत्-मा फिम्भूता-समारा या गाठ मानुपान् पचणुभवमाणा' मत्यनुभयन्ती विहरति । तस्य सजिनदरम्य प्रभो भटाया मायाया आमना आजातः, सागरो नाम दारकः आगीत् स किंम्भूतः-हमारपाणिपादः, सबै लक्षगसम्पन्न यावन्-गुरुपः । तत पल म निनदरामार्थवाहः अयदा कदाचित 'तत्य ण चपाप' इत्पादि । टीका-(तत्य णं चपा नगरीए जिणदत्ते नाम सत्यवाहे ओ, तस्स णजिणदत्तस्स भदा भारिया, ममाला हा जान माणुस्सए काम भोए पच्चणुम्भवमाणा बिहरह) उम चपा नगरी में जिनदत्त नामको एक सार्थवाह ररता था जो धनधान्य आदि से विशेष परिपूर्ण एव जन मान्य था। इसकी धर्मपत्नी का नाम भद्राधा । यह माग सुन्दरी थी। समस्त अग और उपाग इसके पडे ही सुकुमार थे। यह अपने पतिको अत्यन्त इष्ट प्रिय थी। पति के साथ मनुष्य भव सम्पधी काम भोगा को भागती हुई यह आनद के साथ अपने समय व्यतीत किया करती थी (तस्स ण जिणदत्तस्त पुते भदाए भारियाए अत्तए सागरए नाम दारए सुकुमाले जाव सुरूवे) भद्रा भार्या से उत्पन्न हुआ जिनदत्त सार्थवाहके एक पुत्र था-जिसका नाम सागर था। यह सुकुमाल यावत् तत्थण चपाए इत्यादिदार्थ-(तत्थण चपाए नयरीए जिगदत्ते नाम सत्यवाहे अड़े तस्सण जिग दत्तस्स भदा भारिया, समाला इट्ठा जाव माणुस्सए काममोए पच्चणुभवमाणा विहरह) या नगरीमा लत नामे से सावा हेतो तो ते धन ધાન્ય વગેરેથી સવિશેષ સ પન્ન તેમજ સમાજમા પૂછાતે માણસ હતા તેની ધર્મપત્નીનું નામ ભદ્રા હતુ, તે સર્વાગ સુ દરી હતી તેના બધા અંગો અને ઉપાગે બહુ જ સુકેમાળ હતા, તે પિતાના પતિને બહુજ વહાલી હતી પતિની સાથે મનુષ્ય ભવના કામો ભોગવતી તે સુખેથી પિતાને વખત પસાર કરી રહી હતી (तस्सणं जिणथत्तस्स पुत्ते भदाए भारियाए अत्तए सागरए नाम दारए मुकुमाले जाव सुरूवे) ભદ્રાભાર્યાથી ઉત્પન્ન થયેલે ભદ્રાભાર્યાને એક પુત્ર હતો તેનું નામ સાગર કન તે સકમાર યાવત મુ દર રૂપવાન હતા,
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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