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माताधर्मकयात्र
कम्य धर्मरुचेरनगारस्य सर्वत समन्वाद गागंणगयेपणं कुर्यन्तो यस्य= स्थलं धर्मरुचेरनगारस्य फाल्करणस्थान कौरोपागच्छन्ति, उपागत्य धर्मकरनगारस्य शरीरक ' निप्पाण' निम्माण = माणरहित, ' निन्चेट ' निश्रेष्ट = पेटारहितं ' जयविप्पजट ' जीत्र विपतञ्जीरहीन पश्यन्ति दृष्ट्वा हा हा! अहो ! इति खेदे, 'अरुज्जं' अकार्यम् अनिष्ट जात धर्मरुचिनगारी मृतः, 'विरुद्ध' घेराण अतिधाओ पटिनिक्समति, पटिनिक्यमिता धम्मक इस्सअणगाहस्स सव्वाओ समता मग्गणगवेक्षण करे माणा जेणेव थंडिल्ल तेणेव उचागच्छति, उद्यागच्छित्ता धम्ममइस्स अणगारस्म सरीरग निष्पाण निच्चे जीवविष्पजढ पासति, पासिता शहा अकज्जमिति कट्टु धम्मरुइस्स अणगारस्स परि निव्वाणवत्तिय काउस्मग्ग-करें ति ) उन निर्ग्रन्थ श्रमणों ने अपने धर्माचार्य की इस आज्ञा को यावत् स्वीकार कर लिया । और स्वीकार करके फिर वे धर्मघोष स्थविर के पास से निकले निकल कर उन्होंने धर्मरुचि अनागार की चारों दिशाओमें सब प्रकार से मार्गणा गवेषणा की। इस तरह मार्गण गवेषणा करते हुए जहां वह स्थण्डिल था - धर्मरुचि अनागार की मृत्यु होने का स्थान थावहां आये वहां आकर के उन्होंने धर्मरुषि अनगोर के शरीर को प्राणरहित, चेष्टो रहित और जीव रहित देखा। देखकर के सरसा उनके मुख से हाय हाय यह खेद सूचक शब्द निकल पड़ा वे कहने लगे यह वडा अनिष्ट हुआ-जो धर्मरूचि अनागार का देहावसान हो गया ।
राण अतियाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता धण्मरुइस्स अणगारस्स सन्न ओ समता मग्गणगवेसण करेमाणा जेणेव थडिल्ल तेणेन उवागच्छति उवागच्छित्ता धम्मरुहस्स अणगारस्स, सरीरंग निप्पाणं निच्चेट्ठ जीव विप्पजढ पासति, पासिता दाहा अकज्जमित्ति वटु धम्मरुइस्स अणगारस्त परिनिव्वाण वत्तिय काउ रसग्ग करेंति )
તે નિથ શ્રમણેાએ પેાતાના ધર્માંચાની આજ્ઞાને સ્વીકારી લીધી અને સ્વીકારીને તે ધમઘાય સ્થવિરની પાસેથી નીકળીને ધમ રુચિ અનગારની
બધી રીતે ચામર માગણા તેમજ ગવેષણા કરવા લાગ્યા આ રીતે માગણુ ગવેષણ કરતા જ્યા તે સ્થલિ હતુ ધમ રુચિ અનગારના મૃત્યુનુ સ્થાન હતું ત્યા આવ્યા ત્યા આવીને તેઓએ ધમ રુચિ અનગારના શરીરને નિષ્ઠાણુ નિશ્ચેષ્ટ અને નિર્જીવ જોયુ આ દૃશ્ય જોતાની હાય 1 હાય! ના ખેદ સૂચક શબ્દો નીકળી પડયા મા બહુ જ ખાટુ થયુ છે ધમ રૂચિ અનગારનું
સાથે જ
તેએના મુખથી
તે
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કહેવા લાગ્યા
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