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मतगारधर्मामृतवर्षिण टीका २० १५ नदिफलस्वरूपनिरूपणम
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टीस' तरण से ' इत्यादि । ततः खलु म धन्यः सार्ववाह शकटीशास्ट योजयति, योजयित्वा यनाच्छिना नगरी तत्रोपागच्छति, उपागत्य अहिच्छ श्रायां नगर्या नहिः अभ्योद्याने = मुख्योद्याने सार्थनिवेश करोति, कृत्वा शकटीशास्ट मोचयति । ततः खलु सधन्य सार्ववाह: ' मत्य' महार्थ = महाप्रयो जनक. 'महग्घ' महार्घ महामूल्य, ' महरिह ' माई = महता योग्य 'रायरिह ' राजा = राजयोग्य मामृतात टीला बहुभिः पुरुषै अहिच्छत्रा नगरी मध्यम येन अनुविशति, जनुप्रविश्य यौन तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य ' करयल जाप चद्रावेड' करतल या
,
सार्द्धं सपरिवृत
नस्तु राजा पति-कर
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तरण से धणे सत्यनाहे' इत्यादि ॥ टीकार्थ - (तरण) हमके नाद (से धपणे मत्यना है) उस धन्यमार्थवाहने (सगडी सागर जोया जोयावित्ता जेणेव अहिच्छत्ता पायरी तेणेव उबागच्छद्द ) वहा से अपने गोडी और गाडो को जुनवाया और जुनवाकर जहां अहिच्छत्रा नगरी थी उस ओर चल दिया। (उदागच्छिता अहिच्छत्ताए नगरीए बहिया अगुजाणे सत्यनिवेस करेइ ) धीरे धीरे अहिच्छत्रा नगरी में वह पहुँच गया। वहा पहुँच कर उसने बाहर रहे हुए प्रधान पगीचे में अपने सार्थ को ठहरा दिया । ( करिता सगड़ी सागड मोयावेह ) और वहीं पर अपनी गाडी और गाड़ों को ढील दिया । (aण से or सत्वा महत्व ३ रायारिह पाहुड गेव्हह, ताप पुरिसे सहि सपरिवुडे अरित नयरिं मज्झ मज्झे 'अणुष्पविसह, अणुष्पविसित्तो जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवाग
ण
तरण से धण्णे सत्था इत्यादि
अर्थ - (तरण ) त्यारणाह ( से घण्णे सत्यवाहे ) ते धन्यसार्थ वाडे (सगडी सागडं जोयावेड़ जोयाचित्ता जेणेव अहिच्छत्ता णपरी तेणेव उवागच्छ ત્યાથી પેાતાની ગાડી અને ગડાએને ખેતરાનીને જે તરફ અહિચ્છત્રા नगरी डती ते हिया तर रवाना थये। ( उनागच्छित्ता अहिच्छत्ताए नयरीए पहिया अगुजाणे सत्यनिवेस करेइ ) अने धीमे धीमे अहिछत्रा नगरीभा પહેાચી ગ। ત્યા પહેાચીને તેણે નગરીની બહાર આવેલા પ્રધાન ઉદ્યાનમા पोताना सार्थना सुाभ नाभ्यो ( करिता सगडी सागड मोयाइ ) अने ત્યા જ પેાતાની ગાડીએ અને ગાડાએને ઈંડાવી નાખ્યાં
(तरण से घण्णे सत्यवाहे महत्थ ३ रायरिह पाहुड गेव्ह, गण्डित्ता बहु पुरिसेहिं सद्धि सपरिपुडे अहिच्छत नपरि मज्जा मज्मेण अणुष्पविम, अणुष्पविसित्ता