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________________ ८४२ ान शेपाः = ज्योत्स्नामादि देव्योऽपि वा । सर्वाः पूर्वमत्रे मथुरायां नग जाताः पार्श्वमसमीपे च प्रनजिता । मातापितरोऽपि दुद्द्वि सशनामान: ||मू०१३ || इतिधर्मकथानामाष्टमो वर्गः समाप्तः ॥ ८ ॥ अथ नमो वर्गः मारभ्यते-' णमम्म ' इत्यादि । मूलम् - णत्रमस्त उक्सेवओ, एवं खलु जंबू ! जात्र अटूअज्झयणा पण्णत्ता, त जहा पउमा सिवा सई अंजू रोहिणी नवमिया, अचला अच्छरा, पढमायणस्स उक्खेवओ, एवं खलु जंबू | तेणं कालेण तेणं समएण रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ, तेणं काले तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंस विमाणे सभाए सुहम्माए पउमंसि सीहासणंसि जहा कालीए एव अट्टवि अज्झयणा कालीगमएण नायव्वा, जवर सावत्थीए दो जणीओ हत्थिणाउरे दोजणीओ कपिल्लपुरे दोजणीओ सागेयनयरे दोजणीओ पउमे पियरो विजया मायराओ सव्वाओऽवि पासस्स अंतिए पव्वइयाओ सक्कल अग्गमहिसीओ ठिई सत्त पलिओ माई महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जात्र अत काहिति ॥ सू०१४ ॥ ॥ णमो वग्गो समत्तो ॥ ९ ॥ आदि देविया पूर्वभव में (महुराए णयरीए ) मथुरा नगरी में उत्पन्न हुई और पार्श्वनाथ प्रभु के समीप दीक्षित हुई । ( माया पियरो वि० धृया सरिसणामा ) इन पुत्रियों का नाम वैसा ही नाम इनके माता पिता का है। - अष्टमवर्ग समाप्तः मागधी ज्योत्स्नाला वगेरे हेवीओ पूर्व लवभा ( महुराए णयरीए ) भथुरा नगरीमा उत्पन्न थ मने पार्श्वनाथ प्रभुनी पामेथी दीक्षित थर्ध ( मायापियरो वि० धूया सरिणामा ) मा पुत्रीसोना नाभे। नेवा तेभना भातापिताओौना નામા પણ છે આમે વગ સમાપ્ત
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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