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________________ मनगारधर्मामृतपिणी टी० अ० १४ तेतलिपुनप्रधानचरितवर्णनम् ७३ मात्रुवत् 'अपरिजाणमाणे ' अपरिजानन , तदागमनमननुमोदयन् अनभ्युतिष्ठन अभ्युत्थानाधकुर्वन् 'परम्मुहे ' परामुग्वःविमुग्व सन् सतिष्ठने । ततः खलु तेतलिपुत्रः जनघनस्य रातः सखे भञ्जलिं करोति । 'तएण' ततः खलु तेतलिपुत्रेण अवलिकरणानन्तरमपि स कनक वनो राजा जनाद्रियमाणः, अपरिजानन् , अनभ्युत्तिष्ठन् तप्णीक परागुवः सतिप्ठते । तत' खलु तेतलिपुत्रः कनक वन विपरिणत=विपरीत ज्ञाता ' भीग जार सजायभए ' भीतो यावत् सनातभय , एवमवदत्-मनस्यकथयत्-रुष्टः खलु मम मम विपये कन जो राजा, उसका कोई आदर क्यिा-न उसके आनेकी कोई सराहना की और न उठकर उसे लिया ही। इस तरह अनादर अननुमोदन एव अनभ्यु. स्थान करते हुए वे रोजा प्रत्युत उस ओरसे अपना मुंह फेर कर बैठ गये। (तगण तेतलिपुत्ते कणगज्म रस्स अजलिं करेइ) तेतलिपुत्र ने आते ही राजा कनकध्वज को नमस्कार किया-(तण्ण से कणगज्झए राया अणाढायमाणे तुमिणीय परम्मुहे सचिड) तो भी उन कनक ध्वज राजा ने उस अजलि करने का भी कोई आदर नहीं किया केवल चुप चाप ही विमुख बना हुआ बैठा रहा-(तएण तेतलिपुत्ते कणगप्रय विप्परिणय जाणित्ता भी० सजायभए एव चयासी) तब तेतलिपुत्र ने कनक वज राजा को विपरीत जानकर भीत (भय पाया हुओ) यावत् सजात भय होकर मनमें ऐसा विचार किया-(स्तु ण मम कणगन्नए राया) कनक वज राजा मेरे ऊपर रुष्ट हो गये हैं। (वीणे ण मम कणઆદર ન કર્યો. તેમના આવવાની સરાહના ન કરી અને ઉભા થઈને તેમને સત્કાર્યા પણ નહિ આ રીતે અનાદર, અનનુમોદન અનભુત્થાન કરતા તે રાજા भना तन थी मा ३२वीन भी गया (तएण तेतलिपुत्ते कणगज्झयास अज्ञडिं करेइ ) ततलिपुत्रे सावतानी सारा ने नमार या (तएण से कणगज्झए राया अणाढायमाणे तुसिणीए परम्मु हे सचिट्ठह) છતાએ રાજા કન દવજે તેમના નમસ્કારને પગ ઉચિત સત્કાર કર્યો નહિ ફત તેઓ ચુપચાપ ફેરવીને બેસી જ રહ્યા (तपण तेतलिपुत्ते कणगज्झय पिप्परिणय जाणित्ता भीए जार सजायभए एव चयामी) ત્યારે તેતલિપુત્ર અમાત્યે રાજા કનકધ્વજને પ્રતિકુળલથઈ ગયેલા (નારાજ થયેલા, જાણીને ભયભીત યાવત સજાતભય વાળા થના મનમાં વિચાર ४ , (रुटेण मम कणगझए रोया ) 0 PIN भा। ५२ नारा
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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