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अच्चणिजे वदणिज्जे पूयणिज्जं सबकारनिज्जे सम्माणणिखे कल्याण मंगल देवयइय पज्जुवासणिज्जेतिक परलोप वि य णं णो आगच्छड़ वहूणि दडणाणि य मुंडणाणि प तज्जणाणि य ताडणाणि य जाव घाउरत ससारकतारं जाव वीडवइस्सर जहावसे पोंडरीए अणगारे । एवं खलु जंबू | समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरण तित्थगरेणं जान सिद्धिगइणामधेज्ज ठाण मपत्तेण एगृणवीसइमस्ल नायज्झयणस्स अयमेट्टे पन्नत्ते । एव खलु जबू ! समणेर्ण भगवया महावीरेण जाव सिद्धिगणामधे ठाण संपतेगं छस्स अंगरस पढमस्स सुयक्खधस्स अयम पण्णेचे तित्रेमि ॥ सू० ७ ॥
टीका- ' तुएण से ' इत्यादि । ततः खलु स पुण्डरीकोऽनगारो यत्रैव स्थभिरन्तस्तत्रैव उपगच्छति, उपागत्य स्थविरान भगवतो वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्त्लिा स्थविराणामन्तिके' दोच्चपि द्वितीयमपवारम् चातुर्याम= चतुर्मवरूप धर्म प्रतिपते । तथा पष्ठक्षपणपारणाया समाप्ताया प्रथमाया
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तण से पोंडरीए अणगारे' इत्यादि ।
टीकार्थः -- (तरण) इसके बाद (से पोंडरीए अणगारे ) वे पुडरीक अनगार (जेणेव थेरा भगवतो तेणेव उवागच्छ ) जहा स्थविर भग वन विराजमान थे वहा आ गये। (उवागच्छित्ता थेरे भगवते वदर, नमसह, चदित्ता, नमसित्ता थेराणं अतिए दोच्चपि चाउनाम धम्म
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(तरण से पो डरीए अणगारे ) इत्यादि ।
अर्थ -- (तरण ) त्यारमा ( से पेंहिरोए अणगारे ) ते युडरी अन गार (जेणेत्र थेरा भगवतो तेणेव उवागच्छत्र) बना स्थविर लगवत त्रिश
જમાન હતા ત્યા ગયા
( उवागच्छित्ता थेरे भगव से बदह, नम सइ, व दित्ता, नम सित्ता येराण अतिए दोध्यपि चाउण्जाम, धम्म परिवers,