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अनगारपणी टी० अ० ९ माकन्दिदारक चरितनिरूपणम्
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गमती, 'सोमाणी तव चरणखीणपरिभोगा चयगकाले देववरचहू' शोचन्तीव तपश्चरणक्षीणपरिभोगा च्यवनकाले देववरख ः- वाचरणक्षीणपरिभोगा=मुक्ततप वरणफलान्यवनकाले=देवभवस्थितिक्षयसमये देववरवधूरिव शोचन्ती तद्यस्थि वजनविदादयोगात् शोक कुर्वतीच दृश्यते । पुनः सा नौका कीदृशी जाता इत्याह'सचुणियकारा' इत्यादि । ' सबुण्णियकटुक्कुबरा ' सचूर्णितकाष्टकारा सच् णितानि = अत्यर्थ चूर्णी भूतानि काष्ठानि कूपर चमुस यस्याः सा तथा, 'भग्ग मेढी ' भग्नमेधिः मग्न = टिव मेवि: =सक्लनीकाधारभूतः स्तम्भो यस्था सा तथा, 'मोडियमहस्समाला ' मोटितसहस्रमाला - मोटित: भग्नः सहस्रमाला = सहस्रसर यजना पारभृतो मालः = उपरितन भागो यस्या सा तथा 'सुलाइयत्र परिमासा' शूलाचितवक परिमासा शूलाजितइव = शूलारोपितइव वक्र. = कुब्जः परिमासः ती हुई लडखडाने लग जाती है-उसी प्रकार यह नौका भी तरगो से आहत होकर मानो थकावट की वजह से ही चलने में लडखडा रही थी । ( सोयमाणी विव तवचरण चीणपरि मोगा चयणकाले देवरवर ) तपश्चरणका जिसने फल भोग लिया है-और अब जिसके च्यवन का समय आ गया है ऐसी देवाङ्गना जिस प्रकार शोक से व्याकुल- चचल - जन जाती है उसी प्रकार यह नौका भी विलकुल चचल बन गई थी । ( सचुनि ककबरा) उस समय इस नौका के कष्ट और कूपर मुस - चूर्णी भूत बन चुके थे । ( भग्गमेढी) इसका अपना सकल आधार भूत स्तभट्ट चुका था । ( मोडिय सहस्स माला ) सहस्रसख्यजनो का आधार भूत उपरितन भाग इसका भग्न हो चुका था । (सलाह यवक परिमासा) शूल पर आरोपित किये हुए के समान इसका परि
ડીયા ખાવા માડે છે તેમજ તે નાવ પણુ મેાજાએથી અથડાઇને જાણે કે થાકીને લથડીયા ખાવા ન માડી હાય !
( सोयमाणी वितरणखीणपरिभोगा चयणकाले देवपर वहू )
તનુ ફળ જેણે ભેાગવી લીધુ છે અને હવે પતન થવાના સમય આવવાથી દેવાગના જેમ શેક વ્યાકુળ-ચચળ થઈ જાય છે, તે પ્રમાણે જ या नाव था। ये राज जनीती ( स चुण्णियकर्ते कुबरा ) भोलसोथी અથડાતા અથડાતા ત્યા સુધી નાવના કાષ્ટ અને કૃખર–મુખ નાન પામ્યા ता ( भग्गगमेढी) नावनो आधार भूत स्तल ( थालसेो ) तूटी पडयेो हतो ( मोडिय सहरसमाला ) हमरो भायुसो न्या यात्रय भेजनी राजे तथेो नावनो पन्ना लाग तूटी गया तो ( सूलाइयत्र कपरिमासा ) शूस ७५२ भूज्वाभा