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________________ १२ ज्ञाताधर्मकथा णाम ' स्थापत्या नाम 'गाहामणी' गाथापत्नी परिससति । सा कोदशीत्याहआढया धनधान्यादि परिपूर्णा, यावत् अपरिभूता-अयैः परामयितुमशक्या, तस्याः खलु स्थापत्यायाः गायापत्न्याः पुत्रः 'थापच्चापुते णाम ' स्थापत्यापुनो नाम सार्थवाहदारकोऽभूत् । स कोश इत्याह-मुकुमारपाणिपाद' यावत् मुरूपः अत्र यावच्छन्दकरणादयपाठोऽनुसन्या --' अहोगपडि पुगपचिंदियमरोरे, लक्खण चजणगुणोनवेए, माणुम्माणपमाणपडिपुण्णमुजायमव्यंगमुदरगे, ससिसोमाकारे कते पियदसणे इति एतानि पदानि मागेर व्याख्यातानि ततः खल सा स्थापत्या गाथापत्नी त दारक 'सातिरेगअहवास जायय । सातिरेकाष्टवर्ष णाम गाहावाणी परिवसइ) स्थापत्य नामकी गाथा पत्नी रहती थी। (अड्डाजाव अपरिभूया ) यह धन धान्य आदि से परिपूर्ण यावत् अप रिभूत अन्य व्यक्तियों द्वारा परीभधित अशक्य थी। (तीसेण थाव. चाए गाहावइगीए पुत्ते थावच्चा पुते णाम सत्यपाहदाररा होत्था) उस स्थापत्य गाथापत्नी का पुत्र था जिप्त का नाम स्थापत्य पुत्र था। वह सार्थवाहदारक कहलाता था। (सुकुमालपाणिपाएजाव सुरूवे) इसके हाथपैर सुकुमार थे । यावत् यह अच्छे रूप वाले थे। यहा यावत् शब्द से " अहीणपडिपुण्णपचिदियसरीरे, लक्खणवजणगुणोववेए, मागुम्माणपमाण पडिपुण्णसुजायसवग सुदरगे समि सोमाकारे कते, पियदमणे " इस पाठ का सग्रह हुआ है । इनपदों का अर्थ इहिले कहा जा चुका है ( तण्ण साधावच्चा गाहावहणी त दारय सातिरेग अट्ठ वासजायय जाणित्ता सोहणसि तिहिकरणदिवसणक्खत्तनुहुत्तसि) वइणी परिवसइ) स्थापत्य नामे में माथापत्नी २२ती ती (अट्ठाजावअपरिभूया) તે ધનધાન્ય વગેરેથી પરિપૂર્ણ તેમજ બીજી કોઈ વ્યક્તિથી પરાભૂત ન થાય એવી ती (तीसेण थावचा गाडा ua धावन्चापत्ते णाम सत्यवराहदारण होथा)
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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