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________________ भनगारधर्मामृतपपिणो टीका अ० ५ प्रभु समवसरणम् ... जातक, किंचिदधिकाप्टवर्पजात ज्ञात्वा शोभने तिथिकरणदिवसनक्षत्रमुहूर्ते 'क लायरियस्स ' कलाचार्यस्य समीपे उपनयति, यावत् सा पलाः शिक्षयति मेघ कुमारवद् द्वासप्ततिकला अनेन शिक्षिता इत्याशय । भोगसमय यौवनवयः समागमेन विषयभोगयोग्यताऽपन्न धात्वा द्वात्रिंशता 'इन्भकुल्गालियाण' इभ्यकुल बालिकानाम् महाधनाढयसार्थवाहाना द्वात्रिंशत्सख्यकन्यानाम् एकदिवसेन एकस्मिन्नेव दिने पाणि ग्राहयति पाणिग्रहण कारयति । द्वात्रिंशदायः द्वात्रिंशद् हिरण्यकोट्य द्वात्रिंशत् सुपर्णकोटयः इत्यादिरूपो मेघकुमारवदायोऽवगन्तव्य । यावत् तदनन्तर स्थापत्यापुनः द्वात्रिंशता इभ्यकुल पालिकाभिः सार्धं विपुलान् शब्दस्पर्श रसरूपवर्णगन्यान् पियान् यावद् भुजान अनुभवन् विहरति आस्तेस्म ॥मू०६॥ इस के उस स्थापत्य गोथा पत्नीने उस अपने पुत्र को आठवर्ष से कुछ _अधिक जय जाना तर शुभ तिथि करण दिवस नक्षत्र एव मुहर्त में (कलायरियस्स) कलाचार्य के पास (उवणेह) भेजदिया (जाव भोग समत्थ जाणित्ता यत्तीसाए इन्भकुलवालियाण एगदिवसेण पाणिं गेहावेह) यावत् मेघकुमार की तरह उस स्थापत्य पुत्र ने ७२बहत्तर कलाओ को सीखलिया। यौवनवय के समागमन से विषय भोग की योग्यता विशिष्टइसे जानकर बाद में उस स्थापत्यागायापत्नीने उसका वैवाहित सस्कार एकही दिनमे ३२ महाधनाढय सार्थवाहों की कन्याओं के साथ करवादिया । ( पत्तीम ओदाओ जाव यत्तीसाए इम्भकुलमालियाहिं सद्धि विपुले सद्दफरिसरूवगधे जाव भुजमाणे विहरड) ३२वत्तीस हिरण्य कोटि३२ यत्तीस सुवर्ण कोटि इत्यादि रूपदहेज इसे मेघकुमार की तरह मिला। इसके बाद स्थापत्य पुत्र ने ३२ उन इभ्यकुल यालिफाओ के साथ ગાથા પત્નીએ પિતાના પુત્રને આઠવર્ષ થી થડે મોટે થયેલે જાણીને શુભ तिथि, ४२११, दिवस, नक्षत्र मने मुहूत्तमा (कलायरियस्स) सायायनी पासे ( उवणेइ) भा८ये (जाय भोगसमत्थ जाणित्ता वत्तीसार इन्भकुला बालियाण एगदिवसेण पाणिं गेहावेइ) मेमारनी २५ स्थापत्य पुत्र પણ બેહેર કલાઓ શીખીનીની જરે તે યુવાવસ્થ સંપન્ન થઈને વિષય ભેગને લાયક થયે ત્યારે ગાથાપનીએ એક જ દિવસમાં તેનુ લગ્ન બત્રીસ माधनाढय सार्थवालानी न्यासानी साये उसाच्यु (पत्तीस ओदाओ जाव बत्तीसाए इन्भकुलवालियाहि सद्धिं पिपुले सदफरिसरूगवे जाव भुज माणे विदरह) त्रीस २९५ , की सुरण कोरे ६ मे २नी જેમજ તેને પણ મળી ત્યાર પછી સ્થાપત્ય પુત્ર બત્રીશ્ન કિકુળ બ ળાએાની
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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