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सेसं तहेव सव्व, तएण तुबमे देवाणुप्पिया ! कालमासे कालं किचा जयंते विमाणे उपवण्णा, तत्थं णं तुम्भे देसूणाईबत्तीसाई सागरोवमाई ठिई,तएणं तुभ ताओदेवलोयाओ अणंतर घयं चइत्ता इहेव जवूदीवेरजावसाइं२ रज्जाइ उवसपज्जित्ताणे विहरइ, तएण अहं देवाणुप्पिया। ताओ देवलोयाओ आउ. पखएणं जाव दारियत्ताए पञ्चायाया।
किं थ तयं पम्हु, ज थ तया भो जयत पवरामि ।
वुत्था समयं निबद्धं देवा । तं संभरह जाइ ॥सू०३५॥ टीका-'तएण ते' इत्यादि । ततस्तदनन्तर खलु ते नितशत्रुप्रमुखाः पडपि राजान फल्ये-द्वितीयदिवसे 'पाउप्पभायाए' मादुः प्रभाताया-प्रादुभूतः सजातः, प्रभात:-प्रातः कालो यस्याः सा प्रादुः प्रभाता तस्याम् अवसान प्रामा यामित्यर्थः रजन्या रात्री, 'जलते सुरिए ' ज्वलति-उदिते सूर्य, सुवर्णनिर्मिता मस्तकछिद्रा-मस्तकोपरिभागे छिद्रयुक्तां 'पउमुप्पलपिहाण' पोत्पलपिधानाछिद्रोपरि मलाच्छादनयुक्तां, प्रतिमा प्रतिकृति पश्यन्ति, दृष्ट्वा, ' एपा-खछु मल्ली विदेहराजवरकन्या वर्तते ' इति कृत्वा इतिज्ञाला, मल्ल्या विदेहरावर
तएण ते जियसत्तू पामोरखा इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (ते जियसत्तू पामोक्खा छप्पियरायाणा कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जलते सूरिए) उन जितशत्रु प्रमुख छहा राजाओं ने दूसरे दिन जब रात्रि समाप्त हो चुकी और सूर्य का उदय अच्छी तरह हो चुका तय ( जाल तरेहिं ) खिडकियों के रन्ध्रों से (कणगमय मत्थयछिड्रड पउमुप्पलपिहाण पडिम पासइ) कनक मय उस प्रतिकृति को कि जिस के मस्तक में छिद्र था और वह छिद्र जिस
(तएण जियसत्तू पामोक्सा इत्यादि ।।।
साथ-(तएण )त्यारमा (ते जियसत्तू पामोक्खा छप्पियरायाणो कल्ल पाउप्पभयाए रयणीए जलते सूरिए) ततशत्रु प्रभु५ छ समामे भान हिसे न्यारे रात ५ यमन सू२४ Gध्य पाभ्या त्यारे ( जाल तरेहि ) मारीमोना सामोभायी (कणगमय माथयछिद्दड पमुप्पलपिहाण पटिम पासइ) ना मायामा तु पी सनानी प्रातति (भूति )२ (एसणं मल्ली विदेहरायवरकण्णत्तिकदु मल्लीए :
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